हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, September 11, 2010

गढ़वाली कविता : आश कु पंछी

                            


आश कु पंछी
मेरु  आश कु  पंछी रीटणु  रैन्द
झणी किल्लेय बैचैन व्हेकि
 किल्लेय डब-डबाणी रैन्दी 
आँखी दिन -रात  
किल्लेय  लग्गीं रैन्द टक्क
बाटू पल्या स्यार   ?
उक्ताणु रैन्द म्यार तिसल्या प्राण
झणी कैक्का बान
सैद मी आज भी कन्नू छौं आश
कि वू कब्भी  त़ा आला  बोडीऽ अपडा घार
वू जू  मेरा छी ,अर  सिर्फ  जौंकी  छों मी
बस  यीं आश मा ही अब
मी कटणू  छों अपड़ा  दिन
कि मतलब  से  ही सैही
पर  वू आला जरूर  कब्बी त
क्या पता से व्हेय जा एकदिन
वूं थे भी मेरी पीड़ा कू ऐहसास
अर वू सैद बौडिक आला
म्यारा ध्वार
अपडा घार
अपडा पहाड़ 


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ), दिनाक ११-०९-2010

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