धाद
( उत्तराखंड की लोकभाषाओं की चिंता पर एकाग्र )
आखिर कैसे बचेंगी भाषाएँ
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
गढ़वाली ,कुमाऊंनी ,जौनसारी और जौनपुरी कवितायें
( उत्तराखंड की लोकभाषाओं की चिंता पर एकाग्र )
आखिर कैसे बचेंगी भाषाएँ
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
गढ़वाली ,कुमाऊंनी ,जौनसारी और जौनपुरी कवितायें
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फरवरी , २०१० के अवसर पर " धाद " द्वारा आफिसर्स ट्रांसिट हॉस्टल ,रेसकोर्स ,देहरादून में उत्तराखंड की लोकभाषाओं के पक्ष में आयोजित संगोष्ठी तथा सामुदायिक भवन ,भारतीय सर्वेक्षण विभाग ,हाथी बड़कला ,देहरादून में आयोजित " पर्वतीय कवि - सम्मेलन " में रचनाकारों द्वारा सर्जित ,पढ़ी गयी कविताओं का संकलन
संपादक : शांति प्रकाश " जिज्ञासु "
तोताराम ढौंढीयाल " जिज्ञासु "
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