हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Wednesday, January 4, 2012

स्वीणा

स्वीणा

ब्याली रात मीथेय निन्द नी आई ,असल मा मिल सिंद चोट ही एक स्वीणा दयाख ,स्वीणा मा मिल दयाख की हमरी हरी भरी स्यारी मा कै का गोर बखरा उज्याड खाणा छाई ,
मी नींद मा स्वट्गल गोर हकाणू छाई

अचांण्चक से मेरी नींद खुल ग्या और फिर मीथेय सरया रात निन्द नी आई |
सुबेर लेकी जब मिल दुबई भटेय अपड़ी ब्वे खूण फ़ोन कार त़ वा वे बगत कै मा दूध मोल लिणी छाई ,जब मिल अपड़ी छुईं बत्ता लगेंय त़ा वा मी फर हैंसण बैठी ग्या
और ब्वाळ : बुबा तू भी कें स्यारी का बान अपड़ी नींद बिचोल्णु छै रे ,छूछा वा त़ा कब्बा की बंझेय ग्या ,आज १२ बर्ष व्हेय गईँ ,अब तक बांझी ही च ?

या बात सुणीक उन् त़ा कुछ नी व्हेय पर एक बात सोचण फर मी मजबूर व्हेय गयुं ?
एक जमाना मा पहाड़ का लोग भैर खीसगणा का स्वीणा देख्दा छाई ,कुई क्वीटा का ,कवी करांची का ,कुई दिल्ली का कुई बोम्बे का और बड़ा खुश हुंदा छाई
पर अब साब ये जमना मा लोग स्वीणा मा हिम्वंली डांडी कांठी ,गदना , भ्याल पाखा ,स्यार सगोड़ा अर गोर - गुठियार देखणा छीं और देखि की खूब रूणा छीं ?

किल्लेकी ????

या बात मेरी समझम त नी आणि च ???


लेखक :गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

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