हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, January 27, 2012

गढ़वाली कविता : फिक्वाल

फिक्वाल

मी खुण मोरणी बचणी
तुम खुणी ठट्ठा मज्जाक
मी खुण टक टक्की सदनी
तुम्हरा रैं रजवडा राज
तुम्हरा बाटा सोंगा सरपट
अर म्यार जोग तडतड़ी खडी उक्काल
तुम ढुंगा
मी गुणि बान्दरौं कु निर्भगी करगंड कपाल
तुम्हरू भीतिर बैठ
म्यारू गौं निकाल
तुम्हारी स्यार चोछौडी बीज -बीज्वाड
मेरी पुन्गडी सदनी कन्न रै प्वड़ी रवाड
तुम खुण बस एक वोट
हम खुण फिर सालौं साल कु रक्क रयाट
तुम्हरी घोषणा
हम खुणी साखियुं पुरणी चुसणया आस
तुम्हरा रोड शो
हम खुणी तमशु अज्काल
तुम्हरी जनसभा
समझा हमरि मुख्दिखैय आज
तुम्हरू अधा
हम भारी लाचार
तुम्हारी बोतल
हम झटपट तयार
तुम खुण चुनोव
हम खुणी पंचवर्षी लोकतंत्री त्यूहार
महँगई तुम खुण मुद्दा मज़बूरी
हम खुण जिंदगी भर कु श्राप
भ्रष्टाचार तुम खुण बौर्नवीटा
हम खुण रोग ला इलाज
टक टक्की तुम्हरी फिर दिल्ली जन्हेय
फिर तुम गूँगा बहरा
और मी खुण फिर वी रुसयुं मुख लेकी खडू
खैर विपदा कु
तडतुडू लाचार पहाड़
फिर तुम देवता सरया दुनिया खुण
अर मी बस एक एक फिक्वाल
अर मी बस एक फिक्वाल
अर मी बस एक फिक्वाल

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से

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