हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Monday, November 26, 2012

ब्याली अर आज


            



              (१)     ब्याली

डांडी कांठी हैरी हैरी ,चांदी कु  हिमाल
ठण्डु ठण्डु पाणि गदिनियुं कु ,गंगा जी का छाल
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलु  च मुल्क म्यारू  ,रौन्तेलु पहाड़

पिंगली च फयोंळी जक्ख ,रंगीलू  बुरांस
घुगती बस्दिन  जक्ख  , बसद  कफ्फु  हिलांस
खित खित हैन्स्दी जक्ख  , डालियुं डालियुं  ग्वीराल
गीत लगान्दी खुदेड घसेरी   , वल्या पल्या स्यार
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलू  च मुल्क म्यारू  ,रौन्तेलु पहाड़

देब्तों कु वास  जक्ख ,या धरती  महान
धारौं धारौं मा पंवाडा भडौं  का  ,च बीरौं की  शान
वीर माधो ,वीर रिखोला ,वीर कालू महान
वीर बाला तीलू यक्ख ,गढ़ चौन्दकोट शान
सिंह गब्बर ,सिंह दरबान ,सिंह जसवंत जक्ख  ज्वान
वीरौं मा कु बीर भड , बीर कफ्फु चौहान
बीरौं की च धरती या  बीरौं की च शान
रंगीलो कुमौं च मेरु ,छबीलू गढ़वाल
रौन्तेलु च मुल्क म्यारू  ,रौन्तेलु पहाड़ .......

(२)       आज

लूटी गईं सब डान्डी कांठी ,चूस गईं सब  ह्युं हिंवाल
बिसिग ग्याई पाणि गदिनियुं कु , हे ब्वे मच ग्याई बबाल
बूसै  ग्याई फ़्योंली पिंगली  , रुणु च   बुरांस
ठगैणी च  घुगती साख्युं भटयै  , ठगैणु च कफ्फु - हिलांस
पुल पुल  रुणा छीं  यक्ख   , डालियुं डालियुं फूल ग्वीराल
 गीत लगाणी खैरी का  बूढडि  , कब आलु मी काल
  फूल गयीं लटूली मेरी , बुस्याँ  रै गईँ जोग  भाग  
  कन्नू कैरिक कटण हे विधाता ,बड़ी भरी च या उक्काल
  बड़ी भरी च या उक्काल
 बूढैय ग्याई कुमौं सरया  ,बूढैय ग्याई  गढ़वाल
कन्नू कैरिक कटण हे विधाता ,बड़ी भरी च या उक्काल

ठेकदरौं की धरती या   ,
ठेकदरौं  कु यक्ख राज
धारौं धारौं मा अड्डा दारु   का  ,
दारु मा    चलणु  यक्ख सब काज
दारू मा नचणा छीं अब देबता ,
 दारू मा  ही नचणी  बरात
बरसी दारू मा ,जागर  दारु मा ,
प्रमुख  दारू मा ,पटवरी दारू मा
परधान जी का दस्खत दारु मा
मनरेगा का पैसा दारू मा
कन्न प्वाड अकाल गौं   मा
सरया बिलोक रुझ्युं दारू मा

कक्ख हरच माधो ,कक्ख ग्याई  बीरू
कक्ख हरच  भुल्ला पप्पू ,कक्ख हरच तीरू
खाली छीं चौक यक्ख  ,खाली छीं खिलहाण
कुछ ता कारा छूचो , कन्न चिपट  यू मसाण
खाली छीं गौं  यक्ख  ,खाली छीं गुठियार
खुदेणु च कुमौं यखुली  ,खुदेणु  गढ़वाल
तुम्हरी ही छुईं " गीत " ,अब तुम्हरी ही जग्वाल
खुदेणु च कुमौं यखुली  ,खुदेणु  गढ़वाल ......



स्रोत :म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से ,सर्वाधिकार सुरक्षित (गीतेश  सिंह नेगी )

Saturday, November 24, 2012

गढ़वाली कविता : " किन्गोड़ाऽ बीज "

" किन्गोड़ाऽ  बीज "

घैल पौडियूँ  बुराँस कक्खी
सुध बुध  मा नि चा फ्योंली भी
बौल्ये ग्यीं  घुघूती भी देखा
फुर्र - फुर्र उडणी इन्हे फुन्हेय
छोड़ अपडा फथ्यला - घोलौं भी  

लटुली फूली ग्यें ग्वीरालऽ
हुयुं लापता कफ्फू  हिलांस
पकणा छीं बेडू भी बस
अब लाचारी मा बारामास 

सूखी ग्यीं अस्धरा  पन्देरौंऽक भी
सरग भी नि गगडाणू चा
लमडणा छीं भ्यालौं - भ्यालौं मा निर्भगी काफल
कुई किल्लेय हम थेय नि सम्लाणु चा

जम्म खम्म पौडयां छीं  छन्छडा
धार हुईँ छीं  लम्मसट
व्हेय  ग्याई निराश कुलैंऽक भी बगतल 
मुख लुकै ग्याई सौंण कुयेडी भी सट्ट 

रूणाट हुयुं डांडीयूँ कांठीयूँ कू
ज्यूडी - दथुड़ी बोटीं अंग्वाल
छात भिटवौली पूछणा स्यारा - पुन्गड़ा
हे हैल -निसूडौं  कन्न लग्ग फिट्गार 

गैल  ग्याई ह्यूं हिमवंतऽक
बस बोग्णी छीं आंखियुं अस्धार
अछलेंद अछलेंद बुथियांन्द  वे थेय
द्याखा  बुढेय  ग्याई देब्ता घाम 

हर्चिं ताल ढ़ोलऽक ,
बिसिग सागर दमौ  महान
बौल मा छीं  गीत माँगल - रासों -तांदी
समझा उन्थेय मोरयां समान 

छोडियाल चखुलीयौंल भी अब बोलुणु
काफल पाको ! काफल पाको !
तब भटेय जब भटेय हे मनखी !
तील सीख द्यीं
अपडा  ही गौं  मा
बीज किन्गोड़ाऽ सोंगा सरपट चुलाणा
बीज किन्गोड़ाऽ सोंगा सरपट चुलाणा  ..........


स्रोत : हिमालय की गोद से , सर्वाधिकार सुरक्षित (गीतेश सिंह नेगी )