डिग्री
कैथेय कत्तेय नी मिली
त कैल अज्जी तलक द्याखी नि च
कैक्का जोग भाग़ मा लेख्यीं ही नि छाई
ता कैल अज्जी तलक चाखी ही नि च
जौंकी राई टिकईं टोप दिंण रात
उन्थेय मिली त च पर
वू भी रैं बस अट्गा -अटग मा
उन्दू जाणा की बिसुध बणया
घार-गौं बौडिक आणा की
सुध उन्थेय फिर कब्भी आई नि च
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
घर आण की त कई थैं भी सुध नि छ तभी त सभी नेपाली बसी गैनी तख, बिलकुल सच्चाई लिख ले आप्प ल
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