हिमालय की गोद से
Saturday, July 30, 2011
गढ़वाली कबिता : डिग्री
कैथेय कत्तेय नी मिली
त कैल अज्जी तलक द्याखी नि च
कैक्का जोग भाग़ मा लेख्यीं ही नि छाई
ता कैल अज्जी तलक चाखी ही नि च
जौंकी राई टिकईं टोप दिंण रात
उन्थेय मिली त च पर
वू भी रैं बस अट्गा -अटग मा
उन्दू जाणा की बिसुध बणया
घार-गौं बौडिक आणा की
सुध उन्थेय फिर कब्भी आई नि च
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
गढ़वाली कविता : ख्वीन्डा सच
ख्वीन्डा सच
ख्वीन्डी व्हेय गईं दथडी थमली
पैना करा अब हत्थ
रडदा ढुंगा मनखी व्हेय गयीं
गौं व्हेय गईं सफाचट्ट
बांझी छीं पुंगडी यक्ख
पन्देरा प्व़ाड़याँ छीं घैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
मारा अब झैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
मारा अब झैल
अँधेरा मा छीं विगास बाटा
कन्न पवाड चुक्कापट्ट
लुटी खै याल पहाड़
मारा यूँ चप्पट
लुटी खै याल पहाड़
मारा यूँ चप्पट
झुन्गरू , बाड़ी , छंच्या वला मनखी हम
सुद्दी -मुद्दी देहरादूणी कज्जी तक बुखौला
दूसरा का थकुला मा भुल्ला
हम कज्जी तक जी खौला
छोडिक गढ़-कुमौ मुल्क रौंतेलु
परदेशी हवा मा कज्जी तक जी रौला
अयूं संयु जौला आज म्यार लाटा
भोल बौडिक त ग्वलक मा ही औला
अयूं संयु जौला आज म्यार लाटा
भोल बौडिक त ग्वलक मा ही औला
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से