गढ़वाळि व्यंग्य
गीतेश नेगी
गधा मानै दुन्यौ सब चुलै मिनती प्राणीयूँ बटि एक सीधो, शरीफ,समभाव सुभौ वळो एक खास प्राणी जै मा ना क्वी लालच,ना क्वी गुस्सा ना क्वी रिस , ना कै से क्वी शिकैत ,सदानि सब्बियूँ दगड़ि एकसार।
सादगी इन्नी कि माटो खाणो माटो लाणौ। भै गुणों मा गधा संतो अर रिसी मुनियों से कम थोड़ी च कखि । फरक ज्ञान को ही त होलु जरा।
सदानि मीनत -मजूरी कैकि खाण वळो गधा प्रति दुन्यौ ज्ञानी ,ध्यानी विद्वानों सोच सदानि बुरी रै। मिनत मजूरी गधा करदु रै अर मौज सदानि मालिकै रै। दुन्या मा सब चुलै जादा अत्याचार अगर कै दगड़ि ह्वे त वो गधा दगड़ि ही ह्वे। हालात ई छन कि जुग - जुग बटि मनखि सेवा कन्न वळा गधा आज तक बि कुटबाग ही सुणणा, भल्लु कैकि बि बुरो ही बणयाँ। आज बि अनपढ़ त छोड़ा, बड़ा- बड़ा विद्वान तक बि इन्ना बेकूफ़ आदिम तैं गधै संज्ञा देकि सम्मानित करदन। गधा हाड़ तोड़ मेनतै बाद बि अपड़ि पछ्याण नि बणै सकणा मल्लब आइडेंटिटी आफतौ इन्नी मुकाबला कन्ना, जन्न हम गढ़वळि अपड़ि भाषा अर पछ्याण वास्ता कन्ना। मिनत गधा कन्ना अर मौज क्वी हौरि कन्ना। एक गधा ही इन्न च जै तैं ना नौ नामै फिकर ना मान सम्मानै, वे तैं फिकर च त बस काम कन्नै। इलै ही गधा गधा च। अगर इन्नो नि होन्दू त दुन्या मा आज गधाै बि बड़ो नौ अर हाम हूंदी,वो विद्वान या एक संत या हौरि कुछ नि त एक या बडो साहित्यकार त ह्वे ही सक्द छाई।
गधाैं परचौ वेद,पुराण,ब्राह्मण ग्रंथ उपनिषद से लेकि बाइबिल तक सब्बि जग्गा मिलदु। आज साहित्य मा गधाैं तैं क्वी खास आदर सम्मान भले नि मिलणु हो पर एक बगत छाई जब साहित्य मा गधाैं खूब हाम छाई। क्या पिरेमचंद क्या अज्ञेय क्या वर्डसवर्थ सब्बि गधा गुण प्रेमी रैं। कृश्न चन्दर त इतगा मेरबान रैं गधाैं परैं कि वोंन 'एक गधा की आत्मकथा' अर फिर 'एक गधा नेफा में' ही लिखी दे। 'एक गधे का ब्याह ' तकै नाटिक लिखे ग्यीं पर बिचारा गधा आज बि वो सम्मान नि पै सका जैका वो असल हकदार छाई। आज बि समाज मा कैकि बेज्जती कन्नी हो या कै त गिरोणा छवीं हो , कै परैं अपड़ि खिज्ज उतरणी हो सब चुलै बढ़िया संज्ञा गधा ही च। बस वे तैं गधा बणै द्यावा। आदमि त मिंटो मा गधा घोषित ह्वे सकद। पर भै कुछ त बात च यों गधाैं मा जो बड़ा - बड़ा अर मैंगा घ्वाड़ों मा बि नि।
घ्वाड़ों कॉन्फिडेंस कम ह्वे सकद,वो खिज्जै सक्दिन,जल्कि सक्दिन, यादाश्त जबाब देंण परैं वो बिरडी सक्दिन पर गधा कामै भारी खैरियूँ बाद बि, दुन्या बेदर्दी अर अत्याचार सैणा बाद बि मजाल क्या जो खिज्जै जा कब्बि, जल्कि जा या बाटो बिरडी जा कब्बि। मनखि कंदूड को काचो ह्वे सकद पर गधा ना। मीलों दूर बटि बि अपडा लोगों बात साफ सुणि बिंगी दिंद यो गधा । जिन्दग्या खतरनाक बाटा मा ज्ञानी से ज्ञानी मनखि बि मिंटो मा रिस्ता बिसरी बाटा बिरडी जांद पर यो गधा देखा 10 साल या 20 साल नि पूरा 30 साल तकै बि नि बिसरदो। वो घ्वाड़ों जन्न उकाल काटिक सरबट बि नि करदो। हां गधा ज़रा ढीठ जरूर होन्दू , वो जल्दी कै पर भरोसू नि करदो पर जब करदु त आखिर सांस तक पुरो दगड़ू निभौंन्द। आज यख भोल वख वेक सुभौ मा नि।
दुन्या मा गधा सदानि काम पर लग्यां रैं ,राजपाटै क्रेडिट अश्वमेघि घ्वाड़ा लिंदा रैं, पूजा गौ - ब्ळदो अर नागों होंदी रै पर निर्भगी ये गधा जोग सदानि गाली ही लिखीं रैं।
साहित्य मा अज्जकाल एकदा फिर गधाैं खूब जिक्र होणु पर वख बि भासै गधाैं पर चर्चा कख हुणी। भाषा विमर्श कन्न वलों तैं कुछ अतिविद्वान गधा घोषित कैरिक अपडो बढ़िया साहित्यिक परचौ दिणा। माँ सरसुती इन्ना कलमकारों तैं यों गधाैं जन्न कर्मठता अर समर्पण दियाँ।हालांकि यो वूंकि चिर - परिचित शैली या आदत बि ह्वे सकद या फिर वो गधा पिरेमि बि ह्वे सक्दिन। फिर्बी या बड़ा दुख की बात च कि अज्जकाल गधा भासा विमर्श कन्ना अर कुछ विद्वान साहित्यकार गधाैं पर चर्चा कन्ना।
इन्ना ज्ञानी लोग हालाँकि गधा जन्न शरीफ,शान्त, समझदार नि होन्दन । जादातर गुसैल,हंकारी अर अति आत्ममुग्धता रोग से पीड़ित रैन्दी फिर्बी अपडा शब्द ना ना सब्द कौशल से वो मिंटो मा आदिम तैं गधा अर गधा तैं विद्वान घोषित कन्न मा उस्ताज होंदीन।
प्रभु आपै कृपन ब्याले विद्वान आजै गधा ह्वे सक्दिन अर आजै गधा भोळै विद्वान घोषित ह्वे सक्दिन। क्वी बात नि ईं मतलबी दुन्या मा त लोगबाग काम आण पर गधा तैं बुबा तक बणै दिदीं।
प्रभु अगर आपै चरण धर्ती मा होन्दन त मीन छोडणा नि छाई पर वो त हव्वा मा ...।
खैर जबरजस्ती खुट्टा खींचिक मिलणो बि क्या ? बिगैर बात कैको बि सुद्दी तिरशंकु बणै बि क्या फैदा?
गढ़वळि भासा साहित्य मा बि अज्जकाल गधाैं फुल्ल डिमाण्ड च पर सर्या दिक्कत भासै च। गधा साहित्यिक भासा नि जणदो अर साहित्यकार यों भासाप्रेमी गधाैं भासा। साहित्य अकादमी अर भासा संस्थाओं तैं गधाैं तैं लिख्वारों अर लिख्वारों तैं गधाैं भासा सिखाणै कोसिस कन्न चैन्द। परम ज्ञानी लोगों तैं समझण चैन्द कि जतगा जरोरत 21 फरबरी तैं अंतरराष्ट्रीय मातृभासा दिवस मनाणै च उतगा ही 8 मई खुण विश्व गधा दिवस मनाणै बि च।
भासै गधाैं अर साहित्यिक ज्ञानियूँ बीच क्या पता एक दिन छवीं बत्थ लगण से हमरि भासौ संकट अर गधाैं आइडेंटिटी क्राइसिस द्वी खत्म ह्वे जौ। चला ये बाना भासै गधाैं अर साहित्यिक चकडेतौं मुखाभेंट बि ह्वे जैली ।
बोला क्या विचार च, मिलदा छौ फिर 21 फरबरी तैं -अंतररास्ट्रीय मातृभासा दिवस परैं।