हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, December 2, 2011

गढ़वाली कबिता : विगास

गढ़वाली कबिता : विगास


भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास
इन्नु व्हेय ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई गढ़वाल मा
इन्नु जमनु अब एई ग्याई

ढोल दमो निशांण छीं हर्च्यां ,
सरयें नाच फूल
तिम्ला कु व्हेय ग्याई
पोप ड़ी.जे. बजणु धरु धरौं मा
हे ब्वे कन्नू कुनाश
एई ग्याई
भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास
इन्नु व्हेय ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई गढ़वाल मा
इन्नु जमनु अब
एई ग्याई

अरसा , भूडा -पकोड़ा , स्वाला कल्यो का
ठंडा हुन्या
छीं सब अज्काल
गर्म
जमनु कॉकटेल कु व्हेय ग्याई जी
ढबोण्या नि जंणदा नौना अज्कल्या
पिस्युं माने पिल्सबरी व्हेय ग्याई जी
भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास
इन्नु व्हेय ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई पहाड़ मा
इन्नु जमनु अब
एई ग्याई

घ्वाडा सरणा छिन्न मोल सगोडौं मा
अब हल्या ड़ूटियाल
परमानेंट व्हेय ग्याई
भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास इन्नु आ ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई पहाड़ मा
इन्नु जमनु अब
ऐय ग्याई

सेवा
सैंमन्या बिसरी लोग नै जमना का
सब हाय हेल्लो ही व्हेय ग्याई
भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास इन्नु आ ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई पहाड़ मा
इन्नु जमनु अब
ऐय ग्याई


ब्याखुन् नि मिलदी च्या
यक्ख बजारौं मा
कच्ची पक्की और दगडी अब भैज्जी
ऐब कैम्पा कोला कु
व्हेय ग्याई
भैज्जी मिल सुण पहाड़ मा
अब विगास इन्नु आ ग्याई
गढ़वली नि बोल्दु कुई पहाड़ मा
इन्नु जमनु अब
ऐय ग्याई



रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से