हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, March 26, 2011

गढ़वाली कविता : म्वाला का महादेव

बिराली कन्नी छीं रक्खवली दुधा की
स्याल  बणयाँ छीं यक्ख बाघ
लोकतंत्र कु हुणु च यक्ख
साखियुं भटेय  सदनी  बलात्कार


जक्ख  जनता रैन्द बन्णी  म्वाला कु महादेव
वक्ख नेता -ठेक्कादरू  का रैंदी सदनी धन भाग 
बिजली खायी ,पाणि खायी, खायी युंल रोजगार
लग्यां छीं लुटण मा अज्काळ, त्यारू पहाड़ ,म्यारु पहाड़ 


दिन ग्यें,महिना  ग्यें,बीती ग्यें दस साल
सत्ता बदल ,सरकार बदल ,दगडी बदलीं ठेक्कदार
बदलीं  व्होली दुनिया म्यार भां से चाहे  सरया 
पर नि बदला  निर्भगी गौं -पहाड़ , त्यारा  जोग भाग

सुपिन्या बैठियां छीं स्वील ,यक्ख  साखियुं भटेय
उठ जान्द डाव बगत बगत मेरी  भी आश थेय  
भटकीं छीं विगास योजना यक्ख
आखिर बक्खा  जान्द भ्रस्टाचार किल्लेय  उन्थेय झट ? 

प्रधान -पटवारी गौं खा ग्यीं
सड़क चक- डाम ठेक्कदार खा ग्यीं
विगास क़ि गंगा सुख ग्या  ऱोय-ऱोय क़ी 
डाम भी डसणा छीं  अब बल यक्ख  गूरोव बणिक़ी   

मिंढका  छीं लगाणा अज्काळ  यक्ख  हैल बल
बांजी राजनीति की पुंगडियुं मा
बुतणा छीं  बीज बेरोजगरी कु  चटेली क़ि   
हमरि हिम्वली काँठीयूँ  मा

 
ज्वनि बुगणि चा बल यक्ख उन्दु   मैदानुं मा
गंगा जी  से भी तेज 
 गौं -पहाड़ छोड़ क़ी
बस ग्यीं सब परदेश
गौं -पहाड़ छोड़ क़ी , बस ग्यीं सब परदेश
गौं -पहाड़ छोड़ क़ी , बस ग्यीं सब परदेश

               
रचनाकार : गीतेश सिंह  नेगी  ( सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )