छोड़ आया वादियों में एक लम्हा तू जो कहीं
उन वादियों में गूंजती किलकारियों की सुध कौन लेगा ?
वो खेत जो लहराते थे फसलों से कभी
उन बन्ज़रौं की अनबुझी प्यासों को पानी कौन देगा ?
जिस कुयें पर लगती थी सखियों की खूब अठखेलियाँ कभी
उनके खामोश सन्नाटों को अब हामी कौन देगा ?
हाथ जो स्याही के बदले हैं गोबर से सने
उन बेसहारा हाथों को अब कलमों की लाठी कौन देगा ?
वो लोग जो मुर्दा थे जीते जी तभी
उनकी जिन्दा लान्शौं को अब कान्धा कौन देगा ?
जिन शिखरों से आती पिघलकर यौंवन सी गंगा ज्ञान की
उन बूढे शिखरों को अब जवानी कौन देगा ?
खंडहरों से बन गए है तालों से सजे जो मकाँ
उन जंग लगे तालों को अब चाभी कौन देगा ?
छोड़ आया वादियों में एक लम्हा तू जो कहीं
उन वादियों में गूंजती किलकारियों की सुध कौन लेगा ?
उन वादियों में गूंजती किलकारियों की सुध कौन लेगा ?
रचना : " गीतेश सिंह नेगी "