हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, May 27, 2012

" गढ़वली फिन्डका "

                        " गढ़वली  फिन्डका  "

(१) कलजुग मा द्याखो  भई ,  मचयूँ  कन्न घपरोल
    मनखी सस्ता व्हेय ग्यीं यक्ख  ,मैहंगू  च  पिट्रोल

(२ ) गरीबी मा जीणु मुश्किल  ,अर आफत  व्हेय ग्याई  मौत
   सरकार व्हेय ग्या सासू जन्न  ,अर मैहंगैई  व्हेय ग्याई सौत

(३ ) खाणा  कु अन्न नी मिलदु ,पीणा कु पाणि
   जैक खुट्टौं बिनाला कांडा   ,पीड़ा वी जाणी

(४)   मैहंगी  व्हेय ग्या सिगरेट बल ,सस्ती च शराब
      पीण वालू जण्या भैई  रे   ,गर  व्हेली मौ  खराब

(५) लोकतंत्र मा हुणा छीं ,किस्म किस्म का खेल
   रोज हुणा छीं परचा उन्का ,रोज हुणा छीं उ फेल

(६) विष खाणा कु पैसा नी मिल्दा , डाली खाणा कु फांस
     बैलू गौडू अर वी भी   डून्डू   ,ब्वाला कन्नू कै करण थवांस

(७ )    ढुंगा व्हेय गईं देबता  ,अर मनखी व्हेय ढुंगा
         पूजद पूजद दुयुं  थेय ,पलटीं कत्गौं का जून्का

(८)     स्याल अटकाणा छीं कुक्कर थेय , गूणी अटकाणा बाघ 
         बिरली कन्नी छीं  रखवली दुधऽकि , कन्न फुट्ट कपाऽल


..........................................................................   क्रम जारी

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Friday, May 25, 2012

बाँध की विभीषिका पर आधारित गढ़वाली कविता : डाम

A Poem based on dam catastrophe   ;  A Poem based on dam catastrophe by an Asian poet ; A Poem based on dam catastrophe by a south Asian poet ;  A Poem based on dam catastrophe by an SAARC countries poet ; A Poem based on dam catastrophe by an Indian subcontinent  poet ;  A Poem based on dam catastrophe by an Indian  poet ; A Poem based on dam catastrophe by a North Indian  poet ; A Poem based on dam catastrophe by a Himalayan  poet ; A Poem based on dam catastrophe by a Mid-Himalayan poet ; A Poem based on dam catastrophe by an Uttarakhandi  poet ; A Poem based on dam catastrophe by a Garhwali  poet



 डाम



 

त्वे भी डाम
मी भी डाम
कन्न कपाल लग्गीं यी डाम
सरया पहाड़  जौंल  डाम

कैक मुख आई  पाणि
कैकी लग्ग मवसी  घाम
छोट्ट  छोट्टा व्हेय ग्यीं मन्खी
बड़ा बड़ा व्हेय ग्यीं यी डाम

कक्खी बुगाई सभ्यता युन्ल
कक्खी  बोग्दी गंगा थाम
तोडिऽक करगंड पहाड़
छाती मा खड़ा व्हेय गईं यी  डाम

उज्याला बाटा  दिखैक झूठा
कन्न अन्ध्यरौं पैटीं यी डाम
कुड़ी पुंगडी खैऽकी  हमरी 
कन्न जल्मीं यी जुल्मीं  डाम ?

तैरीक अफ्फ गंगा रुप्यौं की
डूबै  ग्यीं हम थेय यी डाम
बुझे  की भूख तीस अप्डी
सुखै  ग्यीं हम्थेय यी डाम

मन्खी खान्द मंस्वाग द्याख
यक्ख सभ्यता खै ग्यीं यी डाम
साख्युं कु जम्युं  ह्युं संस्कृति
चस्स चुसिऽक गलै ग्यीं  यी डाम

त्वे भी डाम
मी भी डाम
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !



रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित 


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Wednesday, May 23, 2012

गढ़वाली कविता : " खैरीऽ का गीत "

गढ़वाली कविता :  " खैरीऽ का गीत "


  मी त गीत खैरीऽ का लगाणु  छौं ! 

  कांडों थेय  बिरैऽकी ,फूल बाटौं सजाणु छौं
  छोडिक अप्डी , दुन्या कि लगाणु छौं
होली दुनिया बिरड़ी कलजुगी चुकापट्ट मा
  सोचिऽक मुछियलौंऽल बाटा दिखाणु छौं 

 मी त गीत खैरीऽ का लगाणु  छौं  !  

तिस्वला  रें प्राण  सदनी जू ,अस्धरियौंऽल उन्थेय  रुझाणु छौं
ज्वा  जिकुड़ी फूंकी रैं अग्गिन   मा ,वा प्रीत पाणिऽल बुझाणु छौं
कु बग्तऽ कि फिरीं मुखडी  सब्या , सुख मा सब सम्लाणु छौं
जौं पिसडौंऽल डमाई सरया जिंदगी मीथै , मलहम उन्ह फर आज लगाणु छौं
                                                 
    मी त गीत खैरीऽ का लगाणु  छौं  !


जौंल बुगाई मिथै  ढंडियूँ मा , उन्थेय  गदना तराणु छौं
 जैल मार गेड खिंचिक सदनी ,वे थेय ही  सुल्झाणु छौं
अटगाई जौंल जेठ दुफरी मा , छैल बांजऽक उन्ह बिठाणु
छौं
जैल  बुत्तीं विष कांडा सदनी , फुल पाती वे खुण सजाणु छौं
  
मी त गीत खैरीऽ का   लगाणु  छौं !
 
 जौं ढुंगौंऽल खैं ठोकर मिल , उन्थेय देबता आज बणाणु छौं
जौंल नि थामू अन्गुलू भी कब्बि  ,कांध उन्थेय लगाणु छौं
  रुसयाँ रैं मि खुण सदनी जू ,   वूं थेय आज मनाणु  छौं
  जौंल रुवाई सदनी मिथै ,भैज्जी वूं थेय  आज  बुथ्याणु छौं
                                                   
मी त गीत खैरीऽ का   लगाणु  छौं  !


रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार  सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग - हिमालय की गोद से

" ललित केशवान "

गढ़वली अर हिंदी साहित्याऽक   वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय ललित केशवान जी थेय सादर      सप्रेम समर्पित मेरी एक कबिता
          
          " ललित केशवान "

 संवत १८६१ ,.....गते ....
 पौड़ी जिल्ला , पट्टी इद्वाल्स्युं
 छटी ग्या कुयेडी पुरणी  ,चमक चौछ्व्डी घाम
 आ  हा पैदा व्हाई सिरालीऽम   , गढ़  कवि एक महान
  भै  बंधो ,गढ़  कवि एक महान 

 खिल्दा फूल  हंसदा पात ,रुमझुम बरखणी बरखा आज
खित खित हैसणु डांडीयूँ  मा द्याखा , दंतुडी दिखान्द  चौमास
बांजी  पुंगडी  चलदा व्हेंगी , इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार
भै  बंधो ,इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार


डालियुं मा चखुली  बसणी छाई , बस्णु  छाई कक्खी कफ्फु हिलांस
 मोरणी छाई मातृ भाषा , करण कैल अब म्यारू  थवांस
कै से करण  आज आश मिल ,छीं दिख्याँ दिन अर  तपयाँ घाम
भै  बंधो ,छीं दिख्याँ दिन अर  तपयाँ घाम

दीबा व्हेय ग्या  दैणी फिर  ,व्हेय ग्या दैणु जय बद्री नरैण
प्रकट व्हेग्या लाल हिमवंत कु , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान
भै  बंधो , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान

कलम प्लायी इन्ह उन्ल तब ,सर सर चलैं  व्यंग बाण
लस्स लुकाई मुखडी अंध्यरऽल , पैटाई जब गढ़ गंगा ज्ञान
प्रकट कै दयाई  भड  गंगू रमोला ,प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण  ,
भै  बंधो , प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण  ,

टूट्ट ग्यीं  मायाऽक जाल पुरणा सब , तिडकीं पुरणा बिम्ब
छौंक लगाई ढौऽल पुरैऽक कविता कु तब  ,  छोलिक  किस्म किस्म
ऽक  रंग
मच  ग्याई जंग असलियात की  तब   ,जब  ध्वलीं   मर्चण्या  व्यंग ,
भै  बंधो ,जब  ध्वलीं मर्चण्या  व्यंग


 भूख  मिटै  बरसूँ की  मेरी ललित तिल्ल  मिटै  साखियुंऽक  तीस
खुश  व्हेयऽक सरस्वती तब्ब  , दिन्द यू  शुभ आशीष
 मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव !  अजर अमर  करयाँ   त्वे थेय जगदीश
 मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर  करयाँ   त्वे थेय जगदीश
 मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर  करयाँ   त्वे थेय जगदीश |

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, May 20, 2012

विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद ) : 5 सुमित्रानंदन पन्त की कविता

सुमित्रानंदन पन्त की कविता पहाड़ मा बस्गाल   (गढ़वाली अनुवाद )  

जन्म दिवस पर प्रकृति के सुकुमार कवि को समर्पित ,गढ़वाली अनुदित उनकी एक रचना

 अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

 

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पर्वत प्रदेश में पावस

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,

-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में लनस-नस उत्‍तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्‍चाकांक्षायों से तरूवर
है झॉंक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल

( सुमित्रानंदन पन्त )
      


पहाड़ मा बस्गाल 

(गढ़वाली अनुवाद ) 

बस्गल्या मैना छाई ,छाई पहाड़ी देश
सर सर बदलणी  छाई प्रकृति  अप्डू भेष !

करद्वडी जन्न  पहाड़ चौदिश
फूलूं सी आंखियुं थेय खोलिक अप्डी हज़ार  
देख्णु छाई भन्या  बगत बगत
  पाणि मा अप्डू  बडू अकार


जैका खुट्टौं  मा सैन्त्युं च ताल
 दर्पण सी फैल्युं  चा  विशाल


गैकी गीत गिरि  गौरवऽका 
उक्सैऽकि नशा मा नस नस
मोतीयुं  क़ि माला सी सुन्दर
खतैणा छीं गाज भोरिक छंछडा झर झर

उठ उठिक छातीम पहाड़ऽक
डाली लम्बी लम्बी जन्न आशऽक
 झकणा  छीं शांत असमान फर
 अन्ध्यरु ,अटल ,कुछ चिंता फर |

उडी ग्याई ,ल्यावा अचाणचक्क ,पहाड़
फड्डकीं जब पंखुडा बड़ा बड़ा बादल
सन्न रै ग्यीं छंछडा फिर
सरग चिपट ग्याई धरती फर जब  !


धसिक ग्याई धरती मा डैरिक सान्दण
उठणु च धुऑं ,हल्ये ग्याई दयाखा ताल
सलका डबका दगड बदलौं का
इंद्र खेल्दु  छाई अप्डू इंद्र जाल  |


( गढ़वाली अनुवाद : गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित )


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Friday, May 18, 2012

Poems on subject of World war विश्व युद्ध अर कविता : अनुवाद 2


 

Translation of Poems on  subject of  World war

Translation By Geetesh singh Negi


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युद्ध विभीषिका पर कविताएँ; युद्ध विभीषिका पर कविताओं का एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; युद्ध विभीषिका पर कविताओं का दक्षिण  एशियाई अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का उत्तर भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का मध्य हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ;युद्ध विभीषिका पर कविताओं का गढ़वाली  अनुवादक का अनुवाद ;


                                                       विश्व युद्धऽक कवियौं कि कविता
                        
सिगफ्राईड सैसून कि कबिता (गढ़वाली अनुवाद ) : 2
  
The Survivors

No doubt they'll soon get well; the shock and strain
  Have caused their stammering, disconnected talk.
Of course they're 'longing to go out again,'--
  These boys with old, scared faces, learning to walk.
They'll soon forget their haunted nights; their cowed
  Subjection to the ghosts of friends who died,--
Their dreams that drip with murder; and they'll be proud
  Of glorious war that shatter'd all their pride...
Men who went out to battle, grim and glad;
Children, with eyes that hate you, broken and mad. 

( Siegfried Sassoon)


                       
 जू बच ग्यीं


कुई शक नी च व्हेय जाला वू दुबरा एकदम ठीक ,सदमा अर तनाव से
उंकी लडखडान्दी अर अलझीं  छुईं बत्था
        बिलकुल वू तरसणा छीं भैर जाण खुण
दगड दाना अर डरोंण्या मुख  सिखणा छीं हिटणु  इह नौना
       सर्र   बिसिर जाला वू अप्डी त्रस्त  डरोंण्या रातौं थेय ,
मोरयां दगडीयूँ का  भूतों का दगडू  थेय ,
        दगड कत्ल  का टपकदा  उंका स्वीणा ,अर उ फक्र करला
शानदार लडै फर जैन्ल ख़तम कैर  द्याई उन्कू सरया हंकार
         आदिम , जू चलीं ग्यें लडै मा , छीं गंभीर अर खुश
 नफरात करद  आंखि त्वे से  ,  दुखी  अर बोल्या बच्चों क़ि 


             ( The Survivors  कु गढ़वली अनुवाद  )     

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित 

 

 Translation of Poems on  subject of  World war


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translator 

continued ....






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Poems on subject of World war विश्व युद्ध अर कविता : अनुवाद एवम आलेख : 1


 

Translation of Poems on  subject of  World war

Translation By Geetesh singh Negi


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विश्व युद्ध अर कविता

कब्भी यु जरूरी हुन्द
ता कब्भी नि भी हुन्द
कब्भी यु हमरी भारी  रक्षा करद
ता  कभी कम
कब्भी यु हुन्द न्यौ  अर सच का बाना
कभी हुन्द पैदा झूठ से
ता कब्बी निकज्जू  नेतौं  की घमंडी भूख से

लडै कु कारण चाहे  कुछ भी हो ,सच -झूठ , न्यौ - इन्साफ ,अपडा लोगौं अपडा   मुल्क अप्डी कौम की रक्षा , लोभ , या फिर दुनिया मा अप्थेय बडू अर ताकतवर साबित करणा की राजनैतिक  जिद  या फिर कूट नीतिक चाल |    लडै मा शामिल चाहे कुई  भी हो अमीर गरीब ,छोट्टू बडू ,लाचार मजबूर ,मन्न से  या फिर बेमन्न से ,धरम का नौ फर या इंसानियत का नौ से - लडै  का परिणाम ता आखिर सब खुण  एक जन्नू ही हुन्द |

जब लडै लग जान्द ता दुनिया कु काम काज करणा कु तरीका अर मकसद अर सोच सब  बदल जन्दी ,हल्या हैल  छोड़ दिन्द अर बन्दुक पकड़ दिन्द ,स्कूलया स्कूल छोडिक फौजी वर्दी मा आ जन्दी ,कवि किसा  मा कलम अर कांधी मा  बन्दुक लेकी  चलणा  कु मजबूर  व्हेय जान्द या फिर इनंह  समझा की भारी मन्न से ही सै पर  वी भी एक हिस्सा बण जांद इन्ह लडै  कु | जू कवि ब्याली  तक बन्नी  बन्नी का फुलौं मा अप्डी सुवा कु रंग रूप खुज्यांदु  छाई , जू चखुलीयूँ ,गाड गद्नियूं ,दीवार  ,कुलैं अर किस्म किस्म की  डालियुं मा अप्डी सुवा की चलक - बलक  वींकी मूल मूल हैन्स्दी मुखडी  देख्दु छाई ,जू गदिन्यौं  का पाणी सी समोदर मा समाणा की  आस लगैक  अप्डी कलम चलन्दु छाई ,अपडी जिकुड़ी का प्रेम भाव इन् खत्दु छाई जन्न बस्गाल मा सरग पाणी बरखांद ,जन्न ह्युंद मा सुबेर घाम हिम्वली डांडीयूँ  मा फैलैंद पर लडै मा   वू अब मजबूर व्हेय जान्द दुःख अर दर्द का गीत लिख्णु कु ,उन् ता कवि कु असल काम ये बगत मा अपडा मुल्क मा  वीर रस की गंगा बगाण हुन्द पर जब सरया दुनिया आगऽल हलैणी व्ह़ा  अर एक मनखी दुस्सर मनखी की लोई पीणा कु तयार बैठ्युं व्ह़ा ,चौदिश लोई मा भोरयां हथ - मुंड -खुट्टा पोडयाँ व्ह़ा ता वेकि कलम मा बगता का दगड  लडै का तजुर्बा का हिसाब से वीर रस की स्याई  सुखदा जान्द अर  कल्कालू  रस का
गदना खतैण  बैठ जन्दी अब कवि थेय फुलौं की मौल्यार  अर बाश का बदल बारूदऽक  गंद आन्द ,वू  लाल -पिंगला रंग देखि की सुवा की मुखडी या बुरंशी या  फ्योंली का फूल नी सम्लांदु ,इन् मा वे थेय खून से लतपत ज्वानौं की मुखडी या फिर परेशान , डरयाँ मनख्यूं की पिंगली मुखडी ही दिखेंद | किलै कि बूलै जान्द की कवि अर लिख्वार समाज कु दर्पण हुन्दी इलै एक कवि अर लिख्वार कि या नैतिक जवाबदरी  हुन्द कि वू  लडै कु खरु  सच लडै कि असल पीड़ा अर अप्डी  खैर थेय सरया दुनिया मा मिसाव ताकि वेक चराह दुनिया बी  समझ  साक कि लडै से कब्बी मनख्यात  थेय फैदा नी हुंदू |

इतिहास साक्षी च कि जब जब दुनिया मा लडै लग्ग , बौंल फ़ैल ,अत्याचार व्हाई ,अपराध व्हाई कलम का यूँ सिपैयुंऽल सच दुनिया का समिणी उन्ही धैर द्याई  जन्न कि वू छाई |
दुनिया मा मची ये बगता कि   सबसे खतरनाक लडैऽम भटेय  एक  - विश्व युद्ध  ज्यां से सरया दुनिया कु  नुकसान त  व्हाई च पर सबसे ज्यादा छैल छट्टी मनख्यात कि लग्गीं | विश्व युद्ध कि इन्ह लडैऽमा बड़ा बड़ा कवियुं अर लिख्वारौं हिस्सा ल्याई , पर अच्छी बात या चा कि यूँ लिख्वारौंऽल सब्बी दुःख दर्द सैं ,कन्धा मा बन्दुक धैरिक भी युन्ल कलम नी छ्वाडि अर दुनिया मा लडै  कु असल मुंड मुख दिखै |यूँ कवियुं मा रुडयार्ड किपलिंग ,वर्ड्स वर्थ ,वेरा ब्रिटेन ,थोमस हार्डी ,एडवर्ड थोमस ,सिगफ्राईड सैसून ,रोबेर्ट निकोल्स ,मुरिएल स्टुवर्ट ,चार्ल्स सोरले ,हेनरी न्युबोल्ट ,ऐलन सीगर ,कैथरीन ,इवोर गुरने ,विल्फ्रेड ओवेन ,ओवेन सीमैन ,रोबेर्ट ग्रवेस अर झणी कत्गा ज्ञात अज्ञात नौ छीं ,झणी कत्गा कलम लडै मा सुख ग्ये होली अर झणी कत्गौं  कि कलम लडै का मैदान मा कक्खी  पत्डेय ग्ये होली  |

विश्व युद्ध का तजुर्बौं थेय  कतगे कवियौंऽल कबिता संग्रे का रूप मा तमाम  दुनिया  तक पहुँचाई | यूँ मा सबसे पहलु अर खास नौ विल्फ्रेड ओवेन , सिगफ्राईड सैसून ,एडवर्ड थोमस अर वोर्ड्स वर्थ  कु आन्द |

  विश्व युद्धऽक बाबत छप्यां कुछ खास कबिता  संग्रे  : वोर्ड्स वर्थ बुक आफ फर्स्ट वर्ल्ड वार पोएट्री (मार्केस  क्लाफाम सम्पादित ) , विल्फ्रेड ओवेन्सऽक  द  पोयम्स ऑफ़ विल्फ्रेड ओवेन्स  ,रुपर्ट  हार्ट -डेविस संग्रहित सिगफ्राईड सैसूनऽक   ११३  कबितौं कु संग्रे द वार पोएम्स ,जीन मूर्क्रोफ्त विल्सन सम्पादित  सिगफ्राईड सैसून : मेकिंग  आफ ए वार पोएट भाग १, पैट्रिक  कैम्पबेल सम्पादित : सिगफ्राईड सैसून : ए स्टडी  आफ द वार पोएट्री ,अर एडवर्ड थोमस  कि कबितौं का द्वी संग्रे ख़ास मनै  जन्दी येका अलावा जोंन स्टालवोर्थी सम्पादित वार पोयम्स आफ विल्फ्रेड ओवेन्स , डेविड  रोबेर्ट सम्पादित आउट इन द डार्क - पोएट्री ऑफ़ फर्स्ट वर्ल्ड वार   जैंमा विल्फ्रेड ओवेन  कि २० कविता अर सैसून कि २७ कबिता संग्रहित छीं , माइंड्स ऐट वार : पोएट्री एंड एक्सपिरिएंस ऑफ़ द  फर्स्ट वर्ल्ड वार   जैम डेविड  रोबेर्ट सम्पादित ८० कवियौं कि २५० कबिताऔं कु संग्रे चा ,विवियन नोएयस सम्पादित वोइसिस आफ साईलेंस : द अल्टरनेटिव  बुक ऑफ़ फर्स्ट वर्ल्ड वार पोएट्री ,क्रिस्टोफर  मार्टिन संपादित  वार  पोयम्स कुछ और संग्रे छीं |



 
                                      विश्व युद्धऽक कवियौं कि कविता
                        
सिगफ्राईड सैसून कि कबिता (गढ़वाली अनुवाद ) : १



















 सिगफ्राईड सैसून  कु जलंम ८ सितम्बर १८८६ मा केंट मा व्हाई छाई ,उंल  कैम्ब्रिजऽक  क्लारे कॉलेज मा दाखिला ल्याई पर अधा मा ही कॉलेज छोड़ द्याई  वर्ल्ड वार का बगत वू  कैवेलेरी मा भर्ती व्हेय ग्याई अर १९१५ मा अफसर बणिक फ़्रांसऽक पछिमी सीमा मा भेज्ये ग्याई ,१९१६ मा उन्थेय सैन्य चक्र   भी मिल | फ्रांस मा वेकि भेंट विल्फ्रेड ओवेन अर रोबेर्ट ग्रवेस जन्न  कवियौं दगड व्हाई |१९१७ मा लडै मा घैल हूंण  से वे थेय घार वापिस भेज्ये ग्याई | वू ब्रिटेन अर ताकतवर मुल्कौं कि लडै थेय लम्बू खिच्णा कि कूटनीति से इत्गा परेशान छाई कि वेल एक खिलाफत मा एक घोषणापत्र छपा द्याई छाई | युद्ध का प्रति वेकि नफरात वेकि कवितौं मा साफ़ झलकैंद वेल अफसरों  कि लापरवाही अर मनख्यात विरोधी भावना का खिलाफ अप्डी कबितौं मा व्यंग  रूपी हथियार से भारी भारी चोट करीं अर जब इ कबिता द ओल्ड हंट्स मैंन (१९१७) अर काउंटर अटैक (१९१८ )    मा  छपीं ता भारी हंगामा व्हेय पर वेल विद्रोल  का बाद भी ओवेन अर रोबेर्ट ग्रवेस जन्न मनख्यात का पक्ष मा वैचारिक लडै नी  छोड़ी  अर  मेमोइर्स आफ फोक्स हंटिंग मैंन (१९२८ ) ,ममोइर्स ऑफ़ इन्फैंट्री ऑफिसर  (१९३० ) , शेरस्टनस प्रोगरेस (१९३६ ) ,द ओल्ड सेंचुरी (१९३८ ) ,द वेअल्ड ऑफ़ यूथ (१९४२ ) अर सिगफ्राईडस जर्नी (१९४५ )   लेखिक अप्डू तजुर्बा अर विरोध दुनिया का समिण धैर द्याई  |


मन्खियात का बाना संघर्ष करद करद कलम कु यु सिपै १९६७ मा सदनी खुण चिर निंद्रा मा ख्वे ग्याई अर रै ग्याई ता बस वेकु विश्व युद्धऽक तजुर्बा अर मन्खियात का पक्ष मा आखिर सांस तक  कै भी हालत मा लडै लड्नैक वेकि प्रेरणा |



How to Die


Dark clouds are smouldering into red
While down the craters morning burns
The dying soldiers shifts his head
To watch the glory that returns ;
He lifts his fingers towards the skies
Where holy brightness breaks in flame ;
Radiance reflected in his eyes ,
And on his lips whispered name 

You'd think , to hear some people talk 
That lads go west with sobs and curses ,
And sullen faces as chalk 
Hankering for wreaths and tombs and hearses .
But they 've been  taught the way to do it 
Like christian soldiers ; not with haste
And shuddering groans ; but passing through it 
With due regard for decent taste
  

( Siegfried Sassoon)



 " कन्न कैऽ मोरंण  "

सुलगणा छीं काला बादल लल्नगा व्हेकि

 अर फुकेणि च   सुबेर  ज्वालामुखी का मूड

कटा दिन्द  अप्डू मुंड घैऽल  सिपै

देखणा  कु शान जू आन्द बोडिक

उठैकी अप्डी अंगुली  असमान जन्हे

पैदा हुन्द जक्ख पवित्र लौं  मा   चमक  

अर चमकद आँखौं मा

अर वेक उठ्डियौं मा खुप्स्यानद  एक नौऽ
तुम सोचिला  ,सुणणा  व्हेला  कुछ लोगों थेय  बच्यांद

क़ि जन्दी  पछिम  जन्हे  बिल्खदा अर फिटगरयाँ  ज्वाँन

अर उदास  खढैऽय सी मुखडी   उंकी  

 
तयार  फूल-मालौं ,कब्रौं अर ताबूत सरण वाली गाडीयूँ  खुण

क़िलैय क़ि   उन्थेय सिखये ग्याई ,इन्ही करणु

इसै सिपैयूँ का जन्न , जल्दबाजी मा ना

दगड झरझर कौम्पद ,  पर वे थेय पुरयाणु

शौक  से पुरु ध्यान लगैऽक

( How to Die कु गढ़वली अनुवाद  )


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित 

 

 Translation of Poems on  subject of  World war


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translator 

continued ....


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Tuesday, May 15, 2012

विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद ) : 4 Thomas Carew की कविता


विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद ) : 4 Thomas Carew  की कविता

Thomas Carew  की कविता : असल स्वाणी  (गढ़वाली अनुवाद ) 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी


Thomas Carew got educated   at Merton College, Oxford and the Middle Temple in London and later worked as a diplomatic secretary in Italy, Holland and France, and soon gained a reputation as a poet.

He was a favorite of king charles I .He was eventually appointed to an office at the court of King Charles I, where he was  much admired for his poetical talent.


He modelled his style on Ben Jonson and John Donne and wrote mainly love poetry such as The Rapture
and some epitaphs. He also wrote a masque, Coelum Britannicum, which was performed for the King.I  in his Elegy Carew proclaims Donne 'the universal monarchy of wit'. 

Another poet he admired greatly was the Italian Giambattista Marino, whose wit and extravagant lifestyle resembled Carew's own. 







   

The True Beauty 


                                                                

     ( by Thomas Carew )

   

 

असल स्वाणी

जू करद प्यार गुलाबी  गलोडियूँ  से

अर पसंद करद मूंगा जन्न हौंठ

अर गैणा जन्न सुन्दर आँखौं से

बलद अप्डी प्रेम जोत

बुझ जान्द सदनी खुण वा

किल्लेकी बुस्सै जन्दी सब्बी  धाणी दगड बगताऽक 

भल्ला  विचार अर शांत इच्छा

एक जन्न प्रीत  मा बंधी द्वी जिकुड़ी 

दीन्दी जलंम  अमर प्रेम थेय 

नि छीं यी जक्ख ,मी घिणान्दू वक्ख

देखिक  सुन्दर गलोडियूँ अर ओंठडियूँ अर आँखौं थेय

 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित


Monday, May 14, 2012

विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद ) : ३ वाल्ट ह्विटमैंन


वाल्ट ह्विटमैंन की कबिता :  हे कप्तान ! म्यारा  कप्तान !  (गढ़वाली अनुवाद )

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 


Walt Whitman was born on May 31, 1819, in  New York. His father  was a carpenter and builder of houses,His mother  never read his poetry, but gave him unconditional love.His father  was too burdened with the struggle to support his ever-growing family of nine children, four of whom were handicapped.

early stage of life Young Walt,  was withdrawn from public school at the age of eleven to help support the family. At the age of twelve he started to learn the printer's trade, and fell in love with the written and printed word. He was mainly self-taught. He read voraciously, and became acquainted with Homer, Dante, Shakespeare and Scott early in life. He knew the Bible thoroughly, and as a God-intoxicated poet, desired to inaugurate a religion uniting all of humanity in bonds of friendship.


In 1836, at the age of 17, he began his career as an innovative teacher and then in  1841,  he turned to journalism as a full-time career. He soon became editor for a number of Brooklyn and New York papers. From 1846 to 1847 Whitman was the editor of the Brooklyn Daily Eagle. Whitman went to New Orleans in 1848, where he was editor for a brief time of the "New Orleans Crescent". In that city he had become fascinated with the French language. Many of his poems contain words of French derivation.


On his return to Brooklyn in the fall of 1848, he founded a "free soil" newspaper, the "Brooklyn Freeman". Between 1848 and 1855 he developed the style of poetry that so astonished Ralph Waldo Emerson. When the poet's Leaves Of Grass reached him as a gift in July, 1855, the Dean of American Letters thanked him for "the wonderful gift" and said that he rubbed his eyes a little "to see if the sunbeam was no illusion." Walt Whitman had been unknown to Emerson prior to that occasion. The "sunbeam" that illuminated a great deal of Whitman's poetry was Music. It was one of the major sources of his inspiration. Many of his four hundred poems contain musical terms, names of instruments, and names of composers. He insisted that music was "greater than wealth, greater than buildings, ships, religions, paintings." In his final essay written one year before his death in 1891, he sums up his struggles of thirty years to write
Leaves of Grass. The opening paragraph of his self-evaluation "A Backward Glance O'er Travel'd Road," begins with his reminiscences of "the best of songs heard." His concluding comments again return to thoughts about music, saying that "the strongest and sweetest songs remain yet to be sung."

"When Lilacs Last in the Dooryard Bloomed" and "O Captain! My Captain!" (1866) are two of his more famous poems. 
Poem "O Captain! My Captain!"   is dedicated to the president Abraham Lincoln  for his  victory  in the civil war of America for the abolition of slavery against southern states .

O Captain! My Captain!


O CAPTAIN! my Captain! our fearful trip is done;
The ship has weather'd every rack, the prize we sought is won;
The port is near, the bells I hear, the people all exulting,
While follow eyes the steady keel, the vessel grim and daring:
But O heart! heart! heart!
O the bleeding drops of red,
Where on the deck my Captain lies,
Fallen cold and dead.


O Captain! my Captain! rise up and hear the bells;
Rise up--for you the flag is flung--for you the bugle trills; 10
For you bouquets and ribbon'd wreaths--for you the shores a-crowding;
For you they call, the swaying mass, their eager faces turning;
Here Captain! dear father!
This arm beneath your head;
It is some dream that on the deck,
You've fallen cold and dead.


My Captain does not answer, his lips are pale and still;
My father does not feel my arm, he has no pulse nor will;
The ship is anchor'd safe and sound, its voyage closed and done;
From fearful trip, the victor ship, comes in with object won; 20
Exult, O shores, and ring, O bells!
But I, with mournful tread,
Walk the deck my Captain lies,
Fallen cold and dead. 


 
Walt Whitman

हे कप्तान ! म्यारा कप्तान  ! 

हे कप्तान ! म्यारा कप्तान  ! हमर मुश्किल सफ़र  ख़तम व्हेय ग्याई ,
झेल याल हर मुसीबत हमर जहाजऽल  , मिल ग्याई वू जू  चाहणा छाई हम ,
पोर्ट नजदीक च  ,मिथैय आणि चा आवाज घान्डीयूँ की  , मनाणा छीं  ख़ुशी लोगबाग ,
मी देख्णु  छोवं मजबूत  अर भारी  सांसु वला  जहाज थेय ,
पर हाय मेरी जिकुड़ी !
हाय टपकदा लोईऽक लाल  बूंदा  !
जक्ख जहाजऽमा  च  म्यारू कप्तान ,
पोडयूँ   ठण्डु अर मुर्दा  व्हेकि  ,

हे कप्तान ! म्यारा कप्तान  ! उठा ! अर सुणा आवाज घान्डीयूँऽक ,
उठा !  चढैय  ग्याई निशाण तुम खूण , बजणु चा बिगुल तुम खूण ,
लियां छीं गुलदस्ता अर फूल -माला तुम खूण,लगीं चा भीड़ समोदर का तीर तुम खूण ,
बुलाणी च  तुम थेय ,इन्हे फुन्हेय अट्गदी भीड़ ,उंकी खुदेंद इन्नाह उन्नाह   पलटेंद मुखडी ,
ई ल्यावा कप्तान ! म्यार बुबा   !
मी लगान्दु  हत , मुड तुम्हरा मुंडऽक ,
यु बस एक सुपिन्या च  की  जहाज मा ,
तुम पोडयाँ छोव व्हेकि ठंडा  अर मुर्दा ,
नि दिन्दु जवाब  म्यार कप्तान ,पिंगली  अर शांत ऊँठडियूँल ,
नि करदू महसूस म्यार हत म्यार बुबा , नि चलणी च उन्की नाडी अर नी रै  सांसु  बी  अब वे फर  ,
जहाज  खडू च सुरक्षित डालिक लंगर ,कैरिक पुरु अप्डू सफ़र खतम ,
डरोण्या सफ़र  भटेय , जीतीऽक  जहाज ,आई ग्या  बोडिक पुरैक  अप्डू काम ,
ख़ुशी मनावा ,बजावा  घान्डीयूँ थेय समोदरऽक  तीर तुम  ,
पर मी ,रिटणु छोवं पीड़ा मा ,
जक्ख च  म्यारू कप्तान जहाज  मा , 
पोडयूँ  ठण्डु अर मुर्दा व्हेकि |
           
                             अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार  सुरक्षित

Sunday, May 13, 2012

विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद ) : 2 रुडयार्ड किपलिंग

               विश्व प्रसिद्ध  कवियौं की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद )

                रुडयार्ड किपलिंग की कवितायें ( गढ़वाली अनुवाद )    

               अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

 

                                                     


Kipling  an English poet, short-story writer, and novelist received the 1907 Nobel Prize for Literature. He was born in Bombay, in the Bombay Presidency of British India, and was taken by his family to England when he was five years old. Kipling is widely  known for his works of fiction, including The Jungle Book (a collection of stories ), Just So Stories (1902) (1894), Kim (1901) (a tale of adventure), many short stories, including "The Man Who Would Be King" (1888); and his poems, including Mandalay (1890), Gunga Din (1890), The White Man's Burden (1899) and If— (1910).

Kipling was one of the most popular writers  in both prose and verse, in the late 19th and early 20th centuries. about Kipling ,Henry James said: "Kipling strikes me personally as the most complete man of genius (as distinct from fine intelligence) that I have ever known."

George Orwell called him a "prophet of British imperialism". Literary critic Douglas Kerr wrote: "He [Kipling] is still an author who can inspire passionate disagreement and his place in literary and cultural history is far from settled. But as the age of the European empires recedes, he is recognized as an incomparable, if controversial, interpreter of how empire was experienced. That, and an increasing recognition of his extraordinary narrative gifts, make him a force to be reckoned with."

 In 1907 he was awarded the Nobel Prize in Literature, making him the first English-language writer to receive the prize, and to date he remains its youngest recipient. Among other honors, he was sounded out for the British Poet Laureateship and on several occasions for a knighthood, all of which he declined.

Here the author is trying to translate some of  excellent poems of kipling in Garhwali language starting with " if  "  (from Kipling's poetry collection : Rewards and Fairies ,1910) which was was voted the UK's favorite poem  In a 1995 BBC opinion poll and is also among author's  favorite poem since his school days .


                                                

         If

If you can keep your head when all about you
Are losing theirs and blaming it on you;
If you can trust yourself when all men doubt you,
But make allowance for their doubting too:
If you can wait and not be tired by waiting,
Or, being lied about, don't deal in lies,
Or being hated don't give way to hating,
And yet don't look too good, nor talk too wise;

If you can dream---and not make dreams your master;

If you can think---and not make thoughts your aim,
If you can meet with Triumph and Disaster
And treat those two impostors just the same:.
If you can bear to hear the truth you've spoken
Twisted by knaves to make a trap for fools,
Or watch the things you gave your life to, broken,
And stoop and build'em up with worn-out tools;

If you can make one heap of all your winnings

And risk it on one turn of pitch-and-toss,
And lose, and start again at your beginnings,
And never breathe a word about your loss:
If you can force your heart and nerve and sinew
To serve your turn long after they are gone,
And so hold on when there is nothing in you
Except the Will which says to them: "Hold on!"

If you can talk with crowds and keep your virtue,

Or walk with Kings---nor lose the common touch,
If neither foes nor loving friends can hurt you,
If all men count with you, but none too much:
If you can fill the unforgiving minute
With sixty seconds' worth of distance run,
Yours is the Earth and everything that's in it,
And---which is more---you'll be a Man, my son!

( Rudyard Kipling )



अगर  


अगर तुम
नि हुंदा  परेशान  वे बगत  जब तुम्हारा वार ध्वार का सब्भी
परेशान  व्हेकि
लगाणा व्हा  अफ्जश तुम फर
अगर तुम कैर सक्दो  भरोसू
अफ्फु फर  जब
कन्ना व्हा शक तुम फर सब्भी
पर फिर भी तुम करण  दीन्दो  शक उन्थेय
अगर तुम कैर सक्दो जग्वाल अर नि थक्दा कैरिक जग्वाल
या फिर नि बोल्दा झूठ सुणीक
झूठ अपड़ा बार मा
या जब कुई करद
घिण तुम से , नि आण दिंदा घिण तुम अपड़ा भीतिर
अर येक  बाद भी नि बणदा भल्लू आदिम तुम ,अर नि करदा बड़ी बड़ी छ्वीं

अगर तुम स्वीणा देख सक्दो अर नि बणदां  दास स्वीप्नुयूँ  का
अगर तुम सोच सक्दो अर नि बणान्दा मकसद सिर्फ विचारौं थेय
अगर तुम भेंट कैर सक्दो जय अर विपदा दगड
अर कैर सक्दो एक जन्नु सुभाव यूँ दुया धोक्काबाजौं दगड  
अगर तुम सुण सक्दो वू सच जू तुमुल ब्वाल
जैथे  बेमानौंऽल तोड़ मोडिक बणा द्याई जाल फसाणा कु सट्ट  लोगौं  थेय
या देख सक्दो दरकद , उन्ह धाणीयूँ  थेय ,जौं  फर लगा द्याई तुमुल अप्डू जीबन
अर ठैरिक ,बणा सक्दो फिर उन्थेय ही  टूटयाँ औजारौंऽल

अगर तुम लगा सक्दो थुपूडू अप्डी सरया करी कमैईऽक
अर लगा सक्दो एक  ही बारिम वे थेय दाव फर
अर हैरिऽक ,कैर सक्दो शुरवात दुबरा सुरु भटेय
अर नी  बोल्दा एक सब्द भी अप्डी हार का बाबत
अगर तुम कैर सक्दो मजबूर अप्डी  जिकुड़ी अर सरील और सक्या  थेय
तब भी जब की वू बुरी तरह से टूटयाँ व्हाला भोत पैली भटेय की
अर वू  इन्ही चिपटयाँ रै सकीं ,जक्ख तुम्हर पुटुग कुछ ना व्हा
अलावा वीं इच्छा  शक्ति का जू उन्ह से बोल्द "लग्यां रयाँ  "  

अगर तुम
रै सक्दो  आम आदिम का बीच अपड़ा भला कर्मौं  दगड
या नि छोडदा अप्डू सादु जीवन एक रज्जा दगड रैकी भी
अगर ना दुश्मन अर न  दगडिया कैर साक नुकसान तुम्हरू
अगर तुम
दे सक्दो  मान सम्मान सब्बि मन्खियुं थेय  पर कैथेय भी  भंडिया ना
अगर तुम पूरया सक्दो कब्भी माफ़ नि
कन्न वला एक  मिनट थेय   
लगातार काम कैरिक  साठ सेकंड
त  या धरती तुम्हरी चा ,अर  तुम्हरू ही चा
सब्बि  कुछ  इन्ह धरती मा 
 जू ये से भी बड़ी बात च ,कि तू  बणी जैल्ली
एक मनखी , हे म्यार लाटा  !


 

( रुडयार्ड किपलिंग , अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी )

स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से ,सर्वाधिकार सुरक्षित