हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Wednesday, January 12, 2011

गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ

                                                कुक्करा कु इंसाफ

नयार का पल छाल ,बांज ,बुरांश और कुलाँ की डालियुं का छैल एक भोत ही सुन्दर और रौंत्यलू  गौं छाई | गौं की   धार मा देबता कु एक मंदिर भी छाई  | उन् त गौं मा पंद्रह -बीस कुड़ी छाई पर चलदी बस्दी मौ द्वि- तीन  ही छाई एक छाई दिक्का बोडी की जू छेंद नौना ब्वारी का हुन्द भी गौं मा यखुली  दिन कटणी छाई और ज्वा रोग  से बिलकुल  हण-कट बणी छाई , दूसरी मौ छाई पांचू ब्वाडा की ,बिचरा द्वी मनखी छाई कुल मिला की ,बोडी और ब्वाडा ,आन औलाद त भगवान्  उन्का जोग मा लेख्णु ही बिसरी ग्या छाई और तीसरी मौ छाई जी बल झ्युन्तु काका की  की जू रेंदु छाई काकी और अपड़ी नौनी दगड मा |

 अब साब किल्लेय  की गौं मा मनखी  त भोत की कम छाई इल्लेय दिक्का  बोडी ल  एक कुक्कर पाल द्ये छाई , बोडी ल स्वाच कि एक त  कुक्कर धोखा नी द्यालू  ,दुसरू येका  बाना पर  द्वि गफ्फा  रौट्टा का  मी भी खौंलूँ   |
अब साहब कुक्कर थेय भी आखिर कैकू दगुडू चैणु ही छाई तब ,कुई नी मिलु त वेल मज़बूरी मा बिरलु और स्याल  थेय अप्डू दगड़या बणा देय,अब कैल बोलुणु भी क्या छाई अब ,सब अप्डू अप्डू मतलब से ही सही पर कुल मिल्ला कि  कटणा छाई अपड़ा अपड़ा दिन जन तन कैरी की  |

अब साहब दिक्का बोडी ल  भी  अपड़ी सब खैरी -विपदा का आंसू  भोटू कुक्कर मा लग्गा ही याली छाई ,बिचरु भोटू बोडी थेय अपड़ा नौना से भी जयादा मयालु लगदु छाई |

गौं कि धार मा देबता बांजा कि डाली मा अपड़ी खैर लगाणु छाई कि देख ले कन्नू  ज़मनू  आ ग्याई ये पहाड़ मा, ये  गौं मा ,कभी सूबेर शाम आन्द -जांद मनखियुं कु धुदरट ह्युं रेन्दु  छाई धार मा ,सूबेर शाम लोग- बाग़ मंदिर मा आन्दा जांदा छाई ,अपड़ा  सुख -दुःख ,खैरी -विपदा मी मा लगान्दा छाई ,मी भी सरया दिन मस्त रेन्दु  छाई | खूब आशिर्बाद-प्रेम दींदु छाई उन्थेय पर अब त मी भी अणमिलु  सी व्हेय ग्यु ,सालौं व्हेय ग्यीं मिथेय  भी यकुलांश मा ,मनखियुं थे देख्यां |

इन्नेह  बांजा कि डाली भी अपड़ी जिकड़ी कि खैर लगाण लग्गी  ग्या देबता मा  और वक्ख  ताल  पंदेरू भी तिम्ला कि डाली क समणी टुप- टुप रुण लग्युं छाई  | बिचरू अपडा ज्वनि का वू दिन सम्लाणु छाई जब वेक ध्वार नजदीक गौं की ब्वारी - बेटीयूँ की सुबेर शाम कच्छडी लग्गीं रेंदी छाई और एक आजकू दिन च  की  कुई  बिरडी की भी नी आन्दु वे जन्हे ? क्या कन्न यु दिन भी देख्णु रह ग्या छाई वेक भी जोग मा ?

 अचांणचक से द्वि दिन बाद दिक्का  बोडी  सदनी खुण ये गौं और भोटू थेय छोडिकी परलोक पैट्टी ग्या  छाई  |

अब साब बिरलु ठाट से डंडली मा ट्वटूगु व्हेय कि आराम से स्याल दगड गप ठोकणू  छाई पर भोटू कुक्कर दिक्का बोडी की मौत से बहोत दुखी छाई आखिर बोडी की खैरी -विपदा भोटू  से ज्यादा गौं मा और जंणदू  भी कु छाई ?
अचांणचक से भोटू ल भोकुणु शुरू कैर द्या | बिरलु थेय भारी खीज उठ ,वेक्की निन्द  ख़राब जू हुणी छाई,आखिर वेल कुक्कर खूण  ब्वाल - क्या व्हेय रे निर्भगी ,किल्लेय   भोकुणु  छाई सीत्गा जोर से  ?
श्याल और मी त त्यारा दगडया  व्हेय ग्योव अब ,और इन् तिल क्या देखि याल पल छाल भई की खडू व्हेय की गालू चिरफड़णू छेई तू ? 

कुक्कर ल  ब्वाल-  यार तू  भंड्या चकडैती ना कैर मी दगड  मिल एक  मनखी सी  द्याखू छाई पल छाल अब्भी
बिरलु और स्याल  चड़म से उठी की कुक्कर क समणी आ ग्यीं और पल छाल देखण लग्गी ग्यीं
 बिरोला ल थोड़ी देर मा कुक्कर का कपाल  फर खैड़ा की एक चोट मार और ब्वाल - अरे छुचा क्या व्हेय गया त्वे थेय ?
मी और स्याल  त जाति का ही चंट  छोव पर निर्भगी तू  त कुक्कर छै कुक्कर ,कुछ त शर्म लाज कैरी  दी ,और कुछ ना त बोडी का रौट्टा की ही सही कुछ त एहसान मानी दी | जैखुंण तू भुक्णु क्या छै वू बोडी कु ही नौनु च रे सैद  बोडी की खबर सुणीक घार बोडिकी आणु च बिचरु

इत्गा सुणीक स्याल  भी रम्श्यांण लग्गी ग्या ,सैद कुक्कर ल स्याल  मा कुछ दिन पैली बोडी की खैरी ठुंगा याली छैय,  स्याल  ल ब्वाल अगर जू  मी दानु नी हुन्दु त सेय थेय आज गौं मा आणि नी दिंदु  ,पर क्या कन्न ?
बस जी फिर क्या छाई इत्गा  सुणीक कुक्कर ल जोर जोर से भुक्णु शुरू कैरी द्याई

स्याल  ल स्यू-स्यू ब्वाल और कुक्कर सरपट बोडी का  नौना का जन्हे अटग ग्या ?

लेखक : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )

Tuesday, January 11, 2011

क्या फटीं चा ?

                                                क्या फटीं चा ?


छैलू अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान दिल्ली  मा डाक्टरी की पढ़ये  कन्नू छाई | छोटंम भटेय ही  पढ़यी मा चंट हुणा का दगडी छैलू एक भोत ही सभ्य और जागरूक सामाजिक नौनु भी छाई |गौं का स्कूल से कक्षा पांच पास करणा का बाद छैलू  छात्रवृति फर गुमखाल और वे का बाद कोटद्वार चली ग्या छाई | छैलू कु बुबा किसान छाई  और कुछ  साल पहली ही गुजर ग्या छाई , छैलू  की मा त बिचरी वेकु मुख भी नि देखि साकी और वे थेय जलम दयेकी ही  स्वर्ग सिधार ग्या छाई | लोग बोल्दीन की अगर गौं का नजदीक मा अस्पताल हुन्दु ता आज छैलू बिन स्यें-गुस्यें और बिन ब्वे-बाबू  कु नौनु नि हुन्दु   | पर क्या कन्न ? जैका भाग मा जू लिखूं व्हालू वेल उत देख्णु ही च ना |

छैलू हमेशा की चराह ऐन्सू का साल भी खूब मेहनत कन्नू छाई और  ये  साल भी वरीयता सूचि मा पैलू नम्बर खुण दिन रात एक कन्नु छाई,ये चक्कर मा अज्काल वे थेय न अपड़ा खाण-पीण की चिंता छाई और ना आराम की | आखिर  भोल वेकि अंतिम परीक्षा जू छाई | पढ्दा -पढ्दा छैलू अचाणचक से सुपिन्यों मा सी ख्व्ये ग्या ,सम्लौंण  लग्गी ग्या अपड़ा खैरी और विपदा का दिनों थेय ,अपड़ी अणदेख्यीं ब्वे थेय और अपड़ा लाचार बुबा थेय | अच्छा और सुखिला दिनों थेय वू  याद करण ही वलू छाई की तब्भी कैल वेक कमरा का द्वार भिचोल दयीं और दगडा- दगडी भिचोल दयीं  वेंका कुछ अरमान |

द्वार ख्वलीं ता होस्टल कु डाकिया शम्भू  हत्थ  मा एक लिफफा लेकि खड़ू हुंयु छाई


शम्भू : शैल भाई आपका कार्ड आया है पहाड़ से
छैलू   : अरे शम्भू कैसे हो भाई ? कैसी चल रही है आपके लडके की पढाई आजकल
शम्भू : जी भईया  बस दुआ है प्रभु  की और आपके आशीर्वाद  से लड़का भी ठीक ठाक से पड ही रहा है
छैलू   : अरे गावं से आया है शादी का कार्ड ,शादी है ताऊ जी के लडके की
शम्भू : चलिए भैया जी आप कीजीये अपनी परीक्षा की तयारी  अब हम चलते है ,जय राम जी की

परीक्षा का कुछ दिन बाद छैलू  ब्यो मा शामिल हुण खुण घार चली ग्या  और कोटद्वार भटेय ब्वाडा  खुण  फ़ोन कार

छैलू   :  हेल्लो ब्वाडा जी ,नमस्कार , मी छैलू बोल्णु छोवं छैलू कोट्द्वार भटेय
ब्वाडा :  छैलू  बेट्टा  नमस्कार ,कब आणु छे तू घार बेट्टा
छैलू   :  ब्वाडा जी भोळ दिनम तक पहुँच जोलु ,ज़रा कुछ काम  से रुक्युं छोवं यख ,पर आप भोळ बाज़ार मा कै थेय भेजी दियां म्यार अदर ,ज़रा समान भंड्या सी च मी मा
ब्वाडा : अच्छी बात बेट्टा तू चिंता नि कैर मी सब प्रबंध कैरी द्युल        
छैलू   : ठीक च ब्वाडा जी अच्छी बात तब ,नमस्कार

छैलू  ब्यखुंनि  मा गौं  का  बज्जार मा पहुँच जान्द और इन्ने-उनेह्य देख्णु रेंद की सायेद कुई अयूँ  व्हालू वेकि जग्वाल मा  ,पर वे थई कुई नि दिख्येन्दु बड़ी देर तक काफी देर बाद वे थेय शंकरु च्चा कु नौनु दीपू  दिख्येन्द

 छैलू   :  भुल्ला ,ओ भुल्ला
दीपू    : अरे भेज्जी ,क्या हाल हैं आपके ?कब आये आप ?
छैलू    : भुल्ला बस सब राजी ख़ुशी ,तू सुणा कन्न चलणी  चा तेरी पढैय -लिखैयी  , त्वे थेय ब्वाडा जी  कु भेज्युं व्होलू मेरी अदर हैं ?
दीपू :    अरे भेज्जी किल्लेय  मजाक उड़ाणा छोव ९ फेल आदमी की  यार ,पढई थेय छोड़या कत्गा ही साल व्हेय ग्यीं ,अरे न भाई,कै  ब्वाडा की बात कन्ना छोव तुम ? मी त कोट्द्वार लग्गू बाल बणवाण खुण भई, क्या च की यु सलीम  ज़रा ठीक से नी बणादु , असलम भोत अछू कट्टिंग करद , हाँ  ज़रा महंगू ज़रूर  च १०० रुपया ,उफ्फार डूटियाल खड़ा हुन्या छीं,उन्थेय पूछा ,ब्वाडा कु पक्का उन्मा बोलूं व्हालू ?अज्काळ सब काम यी त कन्ना छीं उन् भी पहाड़ मा , अच्छी बात तब होली मुलाकात फिर

बस इत्गा  बोलिकी दीपू सर हवा व्हेय ग्या वम भट्टेय

छैलू  ल  भी  अपडू  बाकी समान गौं का क़ाका  की दुक्कान मा धार और एक अट्टेची लेकि गौं की उकाल जनेय पैट्टी गया

खड़ी उक्काल कटणा का बाद जब वू  सैणा- तिरछा बाटों से व्हेय की एक गौं का नजदीक पौंहुंच त देयाख की एक लम्बू चौडू फांग  मा भारी भीड़ कट्ठा हुयीं छाई,नौनौं की भीड़ क्रिकेट का मैच मा मस्त हुयीं छाई,छैलू ल एक नौना थेय पूछ

छैलू : क्या बात भुल्ला ,बड़ी भीड़ चा आज मैच मा ? कुछ खास बात ?
नौनु : भेज्जी क्रिकेट टूर्नामेंट चलणु च १० दिन भटेय ,रोज इन्नी भीड़ रेंद अज्काळ ,हर मैच मा एक बुखट्या  इनाम  भी त चा और फिर आज त आखरी मैच च

छैलू : पर भुल्ला अज्काळ त  यु परीक्षा कु टेम च ना ?
नौनु : भेज्जी परीक्षा त हर साल हुणि ही रेंद ,इन्नु  टूर्नामेंट हर साल कक्ख  हुन्द  ? और उन भी आप थेय ले क्या फटीं चा ?

छैलू अप्डू सी मुख लेकि सड़म-सड़म  एथिर बढ़ी  ग्या 

गौं का नजदीक रगड़ मा एक चक-डाम बणणु छाई और लगभग २५- ३० डूटियाल और बिहरी मजदूर काम मा जुटयाँ छाई |

जन जन छैलू गौं का नजदीक जाणु छाई  उन् उन् वेकि सांस तेज हुंदा जाणि छाई  आखिर आज कत्गा सालुं का बाद वे थेय यु दिन देखणा खुण जू मिलूंण वालू छाई  जैकी वू बरसो भट्टी बाट देख्णु छाई ,खैर छैलू आखिर अपड़ा गौं मा पहुँच ग्या  ,हत्थ-मुख ध्वेकी ,च्या पेकि ,बोड़ी-ब्वाडा और भेई-बहन्णो दगडी थोडा इन्नेय -फुन्डेय की छुईं-बत्ता लग्गा की  खाणा खैकी वू चुप-चाप आराम से सेए  ग्या , आखिर  ब्यो  मा  १५ दिन जू बच्यां छाई अब्भी |


हेंक दिन उठद चोट ही वेल ब्वाडा थेय पूछ  - ब्वाडा जी ब्यो खुण लखुड त आप लोगों  ल फाड़ ही याला   होला  ?
ब्वाडा  : बेट्टा तू भी कै जमाना की बात छैयी कन्नू ,लखुड -वखुड कुई नी फडूद अब कैका फ्री मा अज्काळ  , रोज चार बोतल कैल कन्नी खर्च और वेक बाद कैल बोगंण एहसान अलग से यूँ लोगों कु  | गौं वलों  थेय  ले क्या फटीं चा लखुड फड्ना की हमरा  ? मिळ त ६००० रुपया मा नज़िमबाद वाला ठेकदार म फड्वा यलि लखुड पिछिल मैना ही छुचा  |

तबरी दिल्लू काका आ ग्यीं और ब्वाडा खुण ब्वाल -    प्रधान जी स्कूल मा आज मीटिंग च , टक्क लगा की पहुँच ज्यां आप और  बेट्टा छैलू तू भी आ ज्यी दगड मा भेज्जी का       

स्कूल मा सरय गौं की मीटिंग छाई हुन्णी ,और मीटिंग कु विषय छाई  " गौं कु स्कूल  थेय बंद करे जाव की ना  "
स्कूल की पूर्व मास्टरणी कमला बहनजी  ल मीटिंग की शुरुवात कैरी
बहनजी : भई बंधो ,जन की आप थेय पता ही च की आज म्यारु स्कूल मा आखिरी दिन च ,पिछल तीन महिना पहली मिथेई रूडकी मा ट्रांसफर मिली ग्ये,हालाकि पिछला कुछ ८ साल ये  गौं मा मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा साल रहीं पर अब आप  सभी से दूर जाणाकु बगत सैद  आ ग्या ,आज हमल यु फैसला करण  की म्यार बाद और दुसुरु मास्टर आण तक स्कूल कन कै की चलाण ?

बहनजी की बात अभि पूरी भी नी व्हेय छाई की लुहार दाजी खड़ा व्हेय ग्यीं

लुहार दाजी : स्कूल त उन् भी पिछला द्वि महिना से बंद ही हन्यु चा ,बिचरा नौना बाला जरुर कुछ दिन घार भटेय  स्कूल और स्कूल भटेय घार  उब्ब -उन्दू ही  कन्ना रयें पर अब त उन खुण  भी चुकापट  सी व्हेय गया और वू भी गिन्दू  खिलंण  मा  मस्त हुन्या छी |

 बहनजी : ब्वाडा मिळ भी अब क्या कन, आखिर मेरी भी त कुटुंब-दरी च ,म्यार भी नौना- बाला स्कूलया हवे ग्यीं अब ,मि भी चाहंदु  की वू इंग्लिश मीडियम स्कूल मा पढ़याँ और भोळ पढ़ी- लेखी की बड़ा आदिम बणया ,और ट्रांसफर त आप सभी थेय पता च ना कद्गा मुश्किल से मिळ ,पिछला चार साल से चप्पल घिसणा  का बाद अब जाकी कखि आर्डर मिलीं वू भी "गांधी जी की हरयाली " की मदद से | मेरी त या  सलाह च की आप लोग न्य मास्टर जी का आण तक कुछ वैकल्पिक व्यवस्था कैरी ल्यवा , स्कूल भी चलदा रालू और बच्चों की पढैय  भी | मिळ ये  गौं मा अप्ड़ी नौकुरी शुरु कैरी छैयी इलेय एत्गा कोशिस कनु छोवं नाथिर मिथेई ले  क्या प्व़डी  च ,हम त सरकरी आदिम छोव हम्थेय क्या  फटीं च  ?

बहनजी ल  ब्वालू ही छाई की पट्वनी बोड़ी उत्डेय ग्या
पट्वनी बोड़ी :  द भुल्ली जब तुम्थेय नी फिकर च त मि थेय भी क्या  भारी फटीं च ? जन भटेय म्यार ही नाती-नतिण आणा व्हाला दिल्ली भटेय पढ़णा खुण इन्ही स्कूल मा ?

रामदास औजी : बोड़ी या ज़रा हमारू भी ख्याल कैरी दी, स्कूल बंद व्हालू त कक्ख जाण हमरा  नौनु ल और क्या हूँण  उन्कू ?
ब्वाडा जी       :  भई म्यार ख्याल से ,या  स्कूल अब भगवान का ही सहारा फर  च ,जब तक न्य मास्टर नी आन्दु स्कूल बंद ही करण प्वाडली  सैद

छैलू   : वाह ,वाह ,बहोत खूब ,कत्गा समझदार  लोग छोव आप ,सब स्कूल बंद करवांण  फर तुल्याँ छोव ,जत्गा आसान हुन्द यु बोलणु की 
" बंद कैरी द्यावा " खोलूंण उत्गा ही मुश्किल हुन्द | क्या आप सब लोग मिलजुली की महिना का हज़ार -द्वि हज्जार  रुपया भी कट्ठा नी कैरी  सकदा  इंह स्कूल का बाना एक  वैकल्पिक मास्टर की व्यवस्था खुण ?

छैलू   ल  इत्गा ब्वालू ही छाई की तब्भी झबरी  बो मडकै ग्याई

झबरी  बो  : दे रे छैलू   तू भी क्या बात कनु छैयी ?  जब हमरा  नौना बाला पढना ही नी छीं इंह स्कूल मा त हमल किल्लेय दिन्णी महिना का सौ - पच्चास रुपया सुदी -मुदी  बर्बाद कना खुण ? देय बोई हम थेय ले क्या फटीं चा बिगेर बाताकि ? अगर त्वे थेय इत्गा ही फिकर च त तू किल्लेय  नी आ जांदू घार मा मास्टर बणी की  ? उन् त त्वे भी क्या फटीं च छुचा,तू त उन भी द्वि दिन कु महेमान छेई गौं मा | 

खैर साहब अब मीटिंग मा त कुछ हूण वलू नी छाई ,उन् भी मीटिंग कु विषय " गौं कु स्कूल  थेय बंद करे जाव की ना  " छाई जू की   स्कूल बंद करण खुण ही छाई ना की बचाण खुण | खैर मीटिंग सदनी हुन्दी पर काम त कम ही  हुन्दु ,संसद मा त अज्काळ मीटिंग भी नी हुन्दी ,कम से कम ये गौं मा मीटिंग त हुणी च |

हैंक दिन जब  छैलू गौं मा घुमंण -मिलण कु  तैल ख्वाल ग्याई त देयाख की सरय गौं पीला चोंगा वाला एक बाबा का समिण हत्थ जोड़ीक बैठयूँ  छाई और बाबा उन्कू भाग्य इन् बच्णु छाई जन भगवान जिल वे थेय  ये ही काम खुण गौं मा भेजू  व्हालू |

 झबरी बो अप्डू नौना कु हत्थ दिखाणी   छाई वे बगत

जोगी बाबा : माई त्यार  नौना का भाग्य त तडतूडू  चा ,येल अग्नेय जाकी सरय गौं कु नाम रोशन कन्न
झबरी बो    : बाबा क्या ब्बत कन्ना छोव  आप ? तीन बार दस मा फेल व्हये ग्या ,दारू ,भंग्लू  कु भी ऐबी व्हये ग्या और आप बुना छोव की गौं कु नाम रोशन करण ?
पट्वनी  बोड़ी : ब्वारी याँ  मि भी त गौं कु नाम रोशन ही हुणु  च  (बोड़ी ल बो थेय चुग्न्या की बोली )    
जोगी बाबा : माई नौना फर शनि  की भारी दशा च ,यांक वजह से बण्या -बण्या  काम बिगड़ना छीं ,नथिर अब तक तक येल दस पास करिकी पलटन मा हुणु  छाई और सायेद अब तक त तिल  नाती-नतिण दगड़ हेस्णु-खेल्णु छाई,पर माई येकू  भलु कैर ,तू ब्वे छेई ब्वे वेकि ,ये  साल त्यार नौनु फर भारी  प्राण-घातक विपदा आ सकद |

सुणी की बो का हत्थ खुट्टा फुल्ली ग्यीं और द्वी घडी  खुण वा जम-ख़म  सी व्हेय ग्या ,आखिर यु वींकी यकुली आस-औलाद कु सवाल जू  छाई |

झबरी बो    : बाबा तुम खुण हत्थ छीं जोड्यां,कुछ उपाय कैरो ,नथिर मेरी त सब कैरी - कमई  उन्दू जुगा हूण
जोगी बाबा : माई ,जिकुडी  ना  जला, थोडा खर्चा होलू पर संकट सदनी खुण मिट जालू
झबरी बो    : बाबा रुपया -पैसा कु  क्या कन्न ?कैक कपाल फर लगांण उ पैसा जब  आस -औलाद ही सुखी नी रैली

जोगी बाबा : ठीक च माई तीन हज़ार रुपया ल्गला  पूजा -पाठ मा ,आण वालू शनिचर खुण करुलू येकी ग्रह -पूजा,फ़िलहाल पूजा का समान खून तू  २ हज्जार रुपया देय देय ,बाकी पूजा का बाद दे देये |

 झबरी बो पैसा लीना खुण भीतिर गाई ,त छैलू ल बो थेय समझाणा की भोत कोशिश कैरी की बो यु आप्थेय ठगणु चा,ठग्गू  चा  ठग्गू ,
पर बो थेय कख समझ  मा आणि छाई छैलू  की कुई बात ,वीन्ल छैलू  मा ब्वाल

झबरी बो : छैलू जै फर  बितिदी च ना ,पीड़ा कु अहसास  भी वे थेय ही हुन्द ,तिल क्या जणण ?आखिर त्वे थेय फटीं भी क्या च ये  बार मा चिंता कन्ना की ?

खैर छैलू अब बोल भी क्या सकदु छाई ,वू त क्या अब सरय गौं अगिल शनिचर बार कु इंतजार कनु  छाई,जू की अपड टेम फर आ भी च ,पर जोगी ? वैल आखिर आणु भी किल्लेय छाई ? उन् भी ग्रह त उ पूजी ग्या छाई ,बो का नौना का न सही  कम से कम अपड़ा त पूजी ग्या छाई ना ?

ब्यखुंन बगत  छैलू अपड़ा बोड़ी -ब्वाडा दगडी छ्वीं-बत्ता लगाणु छाई ब्यो का बार मा

छैलू : ब्वाडा पतुला और खाण -पीण और औजी कु प्रबंध- निमंत्रण व्हेय गै क्या ?
ब्वाडा जी : म्यार छैलू बेट्टा तू कै ज़माना मा रेंदी और बात कै ज़माना की कन्नू छैयी ? बेट्टा अब पतुलू मा कु खान्द खाणा गौं मा ? और खाणा पकाण खुण आणा त छीं कारीगर कोट्द्वार भटेय ,बैंड भी आणा छीं गुमखाल व्ला  "सुलेमान " का , राहि  अपड़ा औजियुं की बात त वू त उन् भी आही जाला ढोल दमौं कान्धिम धेरिक ,एक बार बोली याल हमल ,अब क्या फटीं  च बार बार औजियुं खुण हत्थ जोडणाकि  हम्थेय ?

छैलू : पर ब्वाडा जी ,हमरी संस्कृति ,हमरा रीती-रिवाज ,हमरू प्यार- प्रेम
छैलू ल अप्ड़ी बात पूरी कैरी भी नी छाई  कि ब्वाडा  अन्गरौं कु पेतण सी भिनभिनाण  लग्गी ग्या

 ब्वाडा जी : छैलू ,मि देख्णु छोव अज्काळ त्वे थेय ,तू  भंड्या ही शास्त्र झडणु छैयी,आखिर क्या चाह्णु छैयी तू बेट्टा,साफ़ साफ़ बता देय


 छैलू :  ब्वाडा जी मि त बस गौं कि सबही समस्याओं कु समाधान चाह्णु छोवं ,बस और क्या ?अप्ड़ी बोली भाषा,अप्ड़ी संस्कृति ,अपड़ा रीती- रिवाज और गौं कु व्हि प्यार -प्रेम और मेल-मिलाप बस और कुछ ना  |

ब्वाडा जी : पर बेट्टा इन्न त बत्ता कि आखिर त्वे थेय क्या प्व़डी चा गौं कि ,गौं कि बोली भाषा, संस्कृति और  रीती- रिवाज की ? तू बस अपड़ा काम मा मन्न लगा और जल्दी से बडू डॉक्टर बनिक अप्डू घार परिवार बसा कक्खी ,ये  गौं का चक्कर मा ना ही पोड त अच्छु रालू त्वे खुण और आखिर त्वे थेय फटीं भी क्या चा ?

खैर ब्वाडा का नौना कु ब्यो भी व्हेय कुछ ग्या दिन बाद,पैसा रुपया खूब खर्च  व्हाई ,पर ठेठ गढ़वाली ब्यो की दूर दूर तक रस्याण नी छेई ब्यो मा ,और आखिर हूण भी कनु कै  छेई सब कुछ त नज़िमबाद ,कोट्द्वार, गुमखाल और नेपाल ब्रांड काम हुणु  छाई |

ब्यो का कुछ दिन बाद छैलू  कुछ ख़ास काम से कोट्द्वार चली ग्या और लगभग ८ -१० दिन तक वेय्की गौं मा कुई खबर नी छाई ,बोड़ी ल ब्वाडा थेय जत्गा गाली दिणि छेई सब दि याल छाई ,ब्वाडा खुण भी अब उकताट सी व्ह्युं छाई की जवाँ नौनु झणी कक्खी मेरी बात कु बुरु त नी मानी ग्ये व्होलू ? ब्वाडा और बोड़ी का मन मा बुरा -बुरा ख्याल  रैह-रैह की आणा रें |
 
 कुछ दिन बाद जब छैलू गौं मा वापिस आयी त वू यखुली  नी आयी दगड़ मा ल्याई एक खुश  खबर सरय गौं खुण,जी हाँ छैलू महाराज पिछला दस बारह दिन मा ब्लाक स्तर से जिल्ला स्तर और फिर मंडल मुख्यालय का बाद सीधा शिक्षा-मंत्री और मुख्यमंत्री से मुलाक़ात  कैरी की गौं का स्कूल खुण एक स्थाई   मास्टर की तुरंत पोस्टिंग का आदेश ले की जू आ गेय  छाई | पर आखिर इन्न क्या कार छैलू की चट-चटाक से काम बणी ग्या ,सरय गौं का लोग अब या ही  बात कन्ना छाई ?

पट्वनी बोड़ी  आखिर पूछ ही द्याई

पट्वनी  बोड़ी :बेट्टा छैलू आखिर तिल इन्न क्या जादू कार पौड़ी और देहरादून जाकी ,छुचा ज़रा बता त सही ?

छैलू खामोश ही राहि और वेल अपड़ा थैला  म भटेय सर एक अखबार  निकालिकी ब्वाडा जनेय  सरका द्या 
ब्वाडा जी :  अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान दिल्ली के छात्र शैलेन्द्र सिंह को मिली हॉवर्ड की प्रतिष्ठित छात्रवृति , चिकित्सा परीक्षा मा अखिल भारत स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया ,सूबे के मुख्यमंत्री ने दी हार्दिक बधाई ,कहा " शैलेन्द्र प्रदेश का ही नहीं अपितु भारत का गौरव है "

बस फिर क्या छाई ,सब थेय समझ  मा आयी ग्या की छैलू ल आज अपड़ा वर्षो की मेहनत का बल फर प्राप्त सफलता का बाबजूद भी आखिर किल्लेय गौं का बार मा सोच ?
अचाणचक  से धीरे-धीरे  गौं कु माहौल मा छैलू ल  एक अच्छु सी बदलाव महसूस कनु छाई और दगड़ा-दगड़  मन ही मन मा एक अजीब सी ख़ुशी भी |
कुछ दिन बाद छैलू  गौं मा सब से मिलिकी वापिस जाण खुण पैटणु छाई ,पर झणि किल्लेय वैथे इन्न लग्णु छाई की कु कुछ छूटणु सी चा ,कक्खी कुछ टूटणु सी चा ?

सब थेय सेवा -सौन्ली बोलिकी  आखिर वेल अपड़ी अट्टेची हाथ मा पकड़ और घार से  निकल त द्याख की समणी  दीपू  मुलमुल हेस्णु छाई |

दीपू : भेज्जी  माफ़ कैर दियां,  वे दिन सैण  मा  खुण  मि भोत शर्मिन्दा छोवं ,पर आज मिळ आप्थेय बाज़ार तक ना सिर्फ छोड्की आण बल्कि गाडी मा बिठा की भी आण
इत्गा बोलिकी दीपू ल  छैलू   कु हत्थ  से अट्टेची  भी थाम द्या
कुछ दूर तक धार मा जाणक बाद छैलू ल दीपू थेय समझा-बुझय की वापिस गौं भेज द्या |

आज सरय गौं मा एक अजीब सी माहौल लग्णु छाई ,सब्थेय झणि किल्लेय इन्न लग्णु छाई की  काश छैलू बोडिक वापस आ जांदू त गौं असल मा इक गौं बण जांदू ?
पर फिर सब यी सोची की अपड मन थेय तसल्ली दिणा रेंह की आखिर वेल किल्लेय  आण ? वे थेय इन्न ले क्या फटीं च गौं की और गौं वलों की ?
सबसे ज्यादा बोड़ी -ब्वाडा ,झबरी बो और पट्वनी बोड़ी का मन मा घपरोल हुणु छाई |
सभी लोग अभि सोच मा ही हरच्यां छाई की दीपू ल ब्वाल  
दीपू : भेज्जी कुछ ख़ास समान भूल ग्यीं सैद ,तभी वापिस आणा छीं उफार या ?अट्टेची  भी नी च दगडी मा ?
 झबरी बो : हाँ लग्णु त कुछ कुछ एन्नी च मिथेय भी ?
जन्ही छैलू गौं मा पहुँच ब्वाडा ल पूछ - क्या बात बेट्टा ? कुछ छुट गया क्या घार मा ?
छैलू : ब्वाडा जी ,मिळ फैसला कैरी याल की मिळ अब  हॉवर्ड नी जाणु ,और अब यक्खी रेंण पहाड़ मा अपड़ा घार गौं का नजदीक  ,अपड़ा ही लोगूँ का बीच मा ,अगर हम ही पहाड़ थेय  छोड़ी द्युन्ला त कैल रैंण फिर यक्ख,आखिर कै थे क्या फटीं  च यक्ख रैणा की फिर ?

ब्वाडा ल इत्गा सुणीक छैलू फर अंग्वाल बोट्टी द्या |

सैद छैलू "क्या फटीं च " ? कु सही मतलब अब समझ ग्या छाई ? और सैद ब्वाडा भी और गौं का बाकी लोग भी और सैद हम सब्भी थेय भी ?


लेखक : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, January 6, 2011

गढ़वाली लेख (व्यंग ) : हल्या नी मिलदु


                                                          हल्या नी मिलदु

झंकरी बोडी  कु नौनु प्रदेश भट्टेय बाल-बचौं दगडी १० साल बाद  गढ़वाल घूमणा  कु अन्यु  छाई , कुछ दिन खुण इन्न लग्णु छाई की जन्न बोडी फर फिर से  जान आये ग्ये व्होली ,नाती नतिणयु दगडी बोडी  खुश दिखेणी छाई और  नौना -बाला   भी पहली बार स्यारा-पुन्गडा खल्याण , नयार,बल्द-बखरा  और सुन्दर हैरा-भैरा डांडा देखि की भोत ही खुश हुन्या छाई,
बुना छाई - दादी त्या  अब हम यक्खी लहेंगे ?
हाँ नौना की ब्वारी जरूर अन्गरौं  की सी खईं सी लगणी  छाई ?
नौना ल बवाल ब्वे अब ती खुण   गढ़वाल मा क्यां की खैर च ? सड़क -पाणि,बिज़ली ,राशन -पाणि की दूकान ,डिश -टीवी ,फ्रिज ,गाडी सब्भी ता व्हेय  गिन गौं मा अब | आराम ही आराम चा त्वे खुण ब्वे अब त़ा

बस ब्बा बाकी त़ा सब ठीक चा पर अज्काल गढ़वाल मा "हल्या नी मिलदु " अब
बोतल देय की भी ना

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )

Wednesday, January 5, 2011

ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली कथा

                                              ब्वे की खैर  :पलायन  फर आधारित  एक गढ़वाली  कथा

एक खाडू और एक खडूणी दगडी छन्नी का स्कूल मा पडदा छाई, धीरे-धीरे दुयुं मा प्यार व्हेय ग्याई ,सौं करार व्हेय ग्यीं की अब चाहे कुछ भी व्हेय जाव  पर जोड़ी दगडी नी  तोड़णी, साहब धूम धाम से व्हेय ग्या  बल ब्यो खाडू और  खडूणी कु , और कुछ साल मा व्हेय ग्यीं उन्का जोंल्यां नौना लुथी और बुथी |

अब साहब लुथी और बुथी  रोज सुबेर डांड जाण बैठी ग्यीं खाडू और  खडूणी दगडी चरणा खूण ,हूँण लगीं ग्यीं ज्वाँनं दुया ,

 लुथी और बुथी  छोटम भटेय देख्दा आणा छाई , दिक्का दद्दी थेय ,बिचरी सदनी खैरी का बीठगा ही उठाणी राई ,लुथी और बुथी सदनी वीन्का आंखों मा अस्धरा ही देख्दा अयं पर बिचरा कब्भी वींकी खैर नी समझ  साका आखिर उंल अब्भी सरया दुनिया देखि भी ता नी छैयी ,उंनकी दुनिया त बस गुठियार भटटी रौल और डांड तक
  ही बसीं   छाई |

एक दिन लुथी ल  बडू जिकुडू कैरी की खडूणी मा पूछ ही देय की माँ या बुडढी दद्दी  क्वा  च और सदनी रुन्णी ही किल्लेय  रेंद यखुली यखुली ?

खडूणी ब्वाल म्यार थौला व  दिक्का बोडी चा  ,हमरा सो-सम्भल्धरा ,दिक्का  बोडी कु एक नौनु चा ,जेथेय बोडी ल भोत ही लाड प्यार से भोत खैर खैकी की सैंत पालिकी अफ्फु भूखु रैकि अप्डू गफ्फ़ा खिल्लेकी  बडू कार,फिर अपड़ी कुड़ी पुंगड़ी धैरी की, कर्ज -पात कैरी की पढ़ना खूण दूर प्रदेश भ्याज़ ,नौनु पड़ी लेखी की प्रदेश मा साहब बणी ग्या और प्रदेश मा ही ब्वारी कैरी की वक्खी बसी ग्या ,पर माँ या मा रुणा की क्या बात चा या ता दिक्का दद्दी   खूण खुश  हुण की बात चा  ?  बुथी ल खडूणी म ब्वाल ,

ऩा म्यार थौला तिल पूरी बात नी सुणि मेरी अब्भि ,नौनु ब्वे थेय मिलण खूण आई छाई एक बार और बोलण  बैठी ग्या बोडी खूण " ब्वे त्यारू नौनु आज बडू साहब व्हेय ग्या प्रदेश मा और तू  छेई की आज भी यक्ख  घास कटणी ,मुंडम पाणि कु कस्यरा ल्याणी छेई और मोल लिप्णी छेई,कुई द्याखलू ता मेरी बड़ी बेज्ज़ती  हूण या  ,तू  चल मी दगडी प्रदेश म़ा छोडिकी ये कंडण्या पहाड़ थेय,अब येल तिथेय कुछ नी दिणु ,ठाट से रैह प्रदेश म़ा अपडा नाती -नतिणु  दगडी "

 बोडी गुस्सा मा पागल सी व्हेय  ग्या और एक झाँपट नौना पर लगाकि बोलंण बैठ "अरे  निर्भगी जै धरती ल त्वे सैंति-पाली की ,लिखेय पड़ेय  की  यु दिन दिखाई आज त्वे वीन्ही धरती खूण  ब्वे बुलंण मा भी शर्म चा आणि ,ता भोल तिल मेरी क्या कदर करण ? थू तेरी और थू च  तेरी  अफसर-गिरी खूण और थू  च  तेरी वीन्ही पडेय खूण जैंल त्वे  थी थेय यु नी सिखाई की ब्वे सिर्फ और सिर्फ ब्वे हुन्द "

बस व्हेय का बाद भट्टेय बोडी गौं मा छेंदी -कुटुंब दरी मा यखुली रैन्द ,नौनु छोड़ी दियाई पर घार नी छ्वाडू,अप्डू पहाड़ नी छ्वाडू , धन्य हो बोडी और बोडी कु पहाड़ प्रेम

लुथी और बुथी चम् -चम् जवान हुणा छाई फिर बहुत दिनों बाद एक दिन  खडूणी ल खाडू खूण ब्वाल " जी बुनेय आज यूँ थेय पल्या छाल कु बडू डांड दिखाई द्यावा , वक्ख खाण -पीणा की भी खैर नी चा ,और यूँ थेय सिखणु खूण भी सब्भी धाणी की सुबिधा रैली "

बस इतगा बात सुणिकी लुथी और रूण लग्गी ग्यीं और बुथी ल ब्वाल  " माँ हम नी चाह्न्दा की प्रभात   हम दुया भी दिक्का दद्दी  का नौना जन व्हेय जौं र तू दिक्का दद्दी जन  धरु धरु म़ा रुन्णी रै,माँ हम खूण ता हमर यु छोटू और रौन्तेलु डांड ही स्वर्ग बराबर चा और हमर गुठियार ही सब कुछ चा ,जख हमल जलंम   धार ,दुसरा का डांड जैकी अपड़ी माँ थेय बिसराणं से ज्यादा हम अपडा ही डांड म़ा भूखी मोरुण पसंद करला "

बस इतगा सुणि की खडूणी  और खाडू खुश व्हेय ग्यीं और लुथी- बुथी और खडूणी  और खाडू  सब दगडी मा प्यार प्रेम से फिर से रैंणं लगी ग्यीं |


रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, January 2, 2011

आईना




अब की जब हर बचपन नौजवानी  से पहले लुट जाता है ,
और रोज एक नया पैबंद भ्रष्टाचार  का ईमानदारी पर सज जाता है ,
उसूल,आचरण और सिद्धांत जिंदगी के तहखानों में उम्रकैद हो जाते है,
और धर्म ,जाति और भाषाओं के नाम पर हम रोज बट जाते हैं,
रिश्वत अब जब लहू बनकर हमारी रगों में दौड़ लगाती  है ,
और मानवीय मूल्य सरे आम चौराहों पर रोज  नीलाम होते हों ,
अब जब बेटियां जहाँ अपने ही घरों में सुरक्षित ना  हों ,
और जलती,लुटती और पेडों पर लटकाई जाती हों ,
अक्सर सामाजिक अहम् के बोझ से ,
जहाँ  संवेदनायें भी जब  न्यापालिका और सरकारों की भांति अक्सर मौन हों ,
और हत्यारे ,फिरकापरस्त और भ्रष्ट मुखौटे हर बार की तरह
जब लोकतंत्री बिस्तरों  में खटमल की तरह घुसपैंठ कर जाते हों
और चुसतें हो वही खूंन जिसकी उन्हे आदत हो चुकी है
जहाँ आज भी रोती हो एक शहीद की माँ अक्सर अकेले में फफक फफक कर
क्यूंकि सदियों  से  दहशत गर्द यहाँ  मेहमाँ बनाकर  रखे  जाते हैं
आज भी होता है रोज यहाँ एक आन्दोलन  धर्म ,जाति और सम्प्रदाय के नाम पर 
और फुका जाता है फिर कोई अपना सा ही  घर और अपने से ही लोग
चन्द मतलबी और मजहबी ठेकेदारों की सामाजिक  एकता के नाम पर
वैमनष्य और संकीर्णता की फसले अब सरपट उग आती हैं यहाँ नवजात मस्तिक पर
उत्तरदायित्व से पूर्व अब यहाँ हर तरफ हकों की अक्सर हर रोज  बात उठती है
कुछ महत्वाकांक्षी आँखे आधुनिकता की चकाचौंध में होती है अक्सर आज भी अंधी
 तो कुछ ख्वाब आज भी दो वक्त की रोटी की आश में चुपचाप भूखे पेट सो जाते हैं   
तो कुछ ख्वाब आज भी दो वक्त की रोटी की आश में चुपचाप भूखे पेट सो जाते हैं   

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार सुरक्षित )

अहसास

जिंदगी अब साँसों की मोहताज़ कहाँ रही ?
ख्वाबों में  हो रहा है सफ़र -ए - ज़िन्दगी
इसमे अब वो खनक वो आवाज कहाँ रही ?
बंद आंखों के सुकून से देखते  हैं अब हम उन्हे
पलके उठाने की भी हमे अब फुर्सत कहाँ रही ?
हवाओं में  ढूंडते फिरते है अक्सर तब से उनको हम
सुना है जब से ज़मीं पर रखने की कदम  खुदा से उनको इज्जाजत नहीं मिली
सुना है जब से ज़मीं पर रखने की कदम  खुदा से उनको इज्जाजत नहीं मिली

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार सुरक्षित )