हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Tuesday, January 31, 2012

गढ़वाली साहित्य का वरिष्ठ साहित्यकार ,आलोचक और समीक्षक भीष्म कुकरेती जी दगड मेरी लिख्भेंट



गढवाळी क उर्जावान अर युवा कवि गीतेश नेगी दगड भीष्म कुकरेतीs छ्वीं बत्त लिख्भेंट

सवाल : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन ?

गी.ने: म्यार ख्याल से कबिता विचारौं और भाव्नौं कु उम्माल च ,गद्न च जैकू मूल स्रोत मिखुंण पहाड़ च ,हमर समाज च और हर वा घटना च जू मनख्यात से जुड़ीं च | कवि बणणा की या साहित्य जगत मा आणा की कभी नी सोची , यीं पुंगडि मा आणु संजोग और म्यारू अहोभाग्य ही समझा ,आज कविता मेरु पहलु प्रेम "पहाड़ " से , पहाड़ का लोगौं से संबाद कु एक सशक्त माध्यम चा ,
अब कबिता लिख्याँ बिना मज्जा नी आन्दु ,अब त यु मी मा एक ऐब सी व्हे ग्या

सवाल: आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?

गी.ने: कबियुं कु त नी बोल सकदु पर हाँ मेरी कबितौं मा पहाड़ और पहाड़ी जीवन से जुडी हर समस्या ,हर सुख दुःख कु असर दिख्येन्द आप बोल सक्दो की प्रकृति और समाज , गोर - गुठियार ,हैल निसुडा ,समस्यौं से संघर्ष करदा मनखी ,पलायन ,भ्रस्टाचार ,राजनैतिक अपंगता ,त कखिम संस्कृति और भाषा से प्रेम और कक्खी मुख लुक्कै और नारी की पीड़ा यी ही मेरी कबिता और गीतों का का मूल छी ,मूल किरदार छीं और सबसे ज्यादा प्रभाव युन्कू ही च मेरी कबितौं मा ,हां म्यार स्वर्गीय दाजी श्री भूपाल सिंह नेगी जी (ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड ) जरूर म्यार एक बहुत बड़ा प्रेरणा स्रोत छीं म्यार लेखन मा , और जत्गा बगत भी प्रवास मा आण से पहली और वेक बाद मी उन दगड रहौं छुटम,वू बगत सयेद मेरी आज तकक की सबसे बड़ी सम्लौंण च मी खूण |

नरेंदर सिंह नेगी जी और चन्द्र सिंह राही जी और " गिर्दा " का गीत मिथय ऊर्जा दिन्दीन ,गढ़वाली साहित्य मा ढंडरियाल जी , भजनसिंह सिंह जी ,चातक जी और अबोध बंधू बहुगुणा जी का भागीरथ कार्यौं से प्रभावित छोवं | प्रीतम भेज्जी का जागर गीत मिथय भोत पसंद अन्दीन ,यूँ सब्युन का बिना म्यार दिंन पुरु नी हुंदू


सवाल : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?

गी.ने: ज्यादातर भंयाँ कागज़ और पेन से ही लिख्दु ,कुछ रचना बस मा और ट्रेन या हवाई यात्रा का लम्बा सफ़र मा भी
लिखीं कबिता त़ा भाव विचार और भावनौं कु समोदर च वेल त हर हाल मा खतेणू च ,पर हां इकुलास भाव विचार और भावनौं की अभिव्यक्ति खूण और अपडा कबिता का किरदारौं दगडी संबाद का वास्ता जरूरी च , यु दुनिया खूण इकुलास व्हेय सकद पर असल मा एक कवि और साहित्याकर खूण त़ यु संगम और सहवास और असल साधना कु बगत हुन्द

सवाल: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?

गी.ने: पहली दा पेन से ही लिख्दु ,फिर कबिता पूरी हूँण फरजब भी बगत मिलद , कम्पुटर से ब्लॉग मा शेयर कैर दिंदु

सवाल: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?

गी.ने: म्यार झोंल़ा मा पेन कागज़ सदनी रैन्द ,अगर बगत नी मिलदु ता मी एक द्वी पंगत/ लेंन और मूल भाव लेखी की धैर दिंदु ,फिर बगत मिलण फर देख्दु ,पर इन्न बगत कम ही आन्द किल्लैकी वैसे पैल्ली तबरी नै विषय और नै किरदार दिमाग मा घपरोल शुरु कै दिंदिं


सवाल: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जाव अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?

गी.ने: कैबरी एक अच्छु विषय बिसरै जान्द मगर अगर याद राई त़ा बाद म तुरंत दुबर कबिता तयार व्हेय जान्द पर सदनी इन्न नी हुन्द कत्गे बार नी भी हुन्दी या फिर हुन्दी भी च त़ा ढंग बिचोल सी व्हेय जान्द किल्लेकी वेमा पहली सुवा जंण प्रेम रस नी आन्दु ,कबहि कबहि वू दुसर ब्या जंण सी व्हेय जान्द इल्लैय मी दुबर कम ही लेख्दु

सवाल: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?

गी.ने: मी कबिता थैं लेख्यंण का बाद द्वी - तीन बार रिवाइज करदू ,शब्दौं फर मी ध्यान दीणा की पूरी कोशिश करदू ,कुई शब्द अगर ठीक नी लगदु त़ा मी कबि कबि अपड़ी ददी या ब्वे से फ़ोन मा चर्चा करदू , फिर वेक सुधार और अवलोकन का वास्ता मी ब्लॉग या इन्टरनेट मा गढ़- कुमौनी साहित्य प्रेमी लोगौं दगड शेयर कैर दिन्दू , रिवीज करणु गढ़वाली शब्दावली ,छंद ,अलंकार और रस मा गुणवत्ता और ज्ञान का वास्ता भोत जरूरी चा


सवाल: क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /

आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?

गी.ने: कबिता वर्कशाप की त नी सोची पर हाँ मंन मा एक इच्छा च की कबि बगत गाडीक की गढ़ कुमौनी कबियुं की रचना और उन्का बारामा मा नए नवांण तै जानकारी मिलींण / उपलब्ध कैरे जाण चैन्द , ये काम मा गढ़ -कुमौनी सामजिक संगठन अच्छी भूमिका निभा सक्दिन और सैद निभाणा भी होला कक्खी |

रै बात प्रशिक्षण की त म्यार ख्याल से कवि हुण खूण या कविता गढ़ना खूण बस भाव -रस ,छंद ,अलंकार और शब्दावली कु ज्ञान हूँण चैन्द ,ये खूण कै औपचारिक प्रशिक्षण की विशेष आवश्यकता नी च पर अगर मिलदी च त लींण मा कुई बुरैयी भी नी च ,
साहित्य मा नै नै प्रयोग करणा भी जरूरी छिन्न , नै नै बिम्ब ,नै नै विषय और नै नै भाव और उनकी अभिव्यक्ति की नै नै तरकीब रचना थेय सार्थक करदीं
गढ़वाली कबिता और साहित्य मा पाठक की रूचि और नै ज़माना की बेकग्रौंड कु भी ख्याल रखंण प्व़ाड़ल़ू ,२१ वी सदी मा ६ वी सदी की बेक ग्रौंड का ऐतिहासिक नाटक ही लिखें जा सक्दीन कविता ना |
गढ़वाली भाषा और साहित्या मा रचना करण से ज्यादा जरूरी मी भाषा थेय बोलंण बच्यांण मा ल्याणा कु पक्षधर छोवं ,गढ़वाली मा लेखिक क्या फैयदा जब हम गढ़वाली मा बच्याणा नी छोव्

सवाल: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?

गी.ने. साहित्यिक आलोचना साहित्या का पतल मा ठुंगार जन हुन्द ,आलोचना से रचना की गुणवत्ता की परख त़ा हुन्दी च

अगर वे थेय सकारात्मक ढंग से लिये जाव त़ा साहित्य कु सतत विकास भी हुन्द ,याँ से साहित्य मा भल्ली बान आन्द

साहित्या की आलोचना से ही आलोचक की अक्षमता कु ज्ञान हुन्द दगडा दगड़ लेखण वलल काव्यांगो कु

कक्ख और कन्नू कन्नू प्रयोग कार , वांकु बच्नैरू का दिमाग फर क्या असर प्वाड यु पता चलद , आलोचना करणु

हर कैक्का बसकी बात नी च यु अनुभव से आन्द ,म्यार ख्याल से नै नवांण थेय अच्छी और निष्पक्ष साहित्यिक आलोचना

जरूर देखण चैन्द याँ से ऊंका बिम्ब मजबूत व्हाला और साहित्या थैं धार मिला ली ,इन्न समझा की आलोचना

मी खूण अपड़ी कलम प्ल्याणा की चीज च

सवाल : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सुखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?

गी.ने: जवाबदारी अर व्यस्तता का कारण विश्वविदालय कु एम .टेक कु अंतिम वर्ष म्यार रचना क्रम मा सुखो जन रै पर फिर मुंबई मा तीन बर्ष और सिंगापूर प्रवास का ग्याँ साल मा मिल खूब ल्याख ,सिंगापूर मा जैकी अच्छु बगत मिल त मिल गढ़वली साहित्य अध्ययन और लेखन मा वांकु पुरु फैदा उठाई और "घुर घुगुती घुर " काव्य संग्रह पुरु कैर दये , ये बीच मा मिल गढ़वली गीत संग्रह और कथा संग्रह भी शुरु कार जेमा अज्जी भी रचनाक्रम जारी च

सवाल: कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?

गी.ने: गुरु जी बगत चैन्द बस बगत ,भूभौतिक अन्वेषण क्षेत्र मा हूँण से और वेक बाद थोडा बहुत सामाजिक जुड़ाव और फिर अध्ययन का बीच मा कबही कबही कबिता खूण टेम बचाणु मुश्किल व्हेय जान्द ,किटाश सी व्हेय जान्द कबिता खूण कबही कबही

सवाल : इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ?

इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद

गी.ने: कबिता से सामाजिक जीवन फर नकारात्मक असर त नी हुन्द बल्कि समाज से आप अच्छा तरीका से जुड़याँ रन्दो , पारिवारिक

गी.ने: जीवन मा भी सब कबिता से सब खुश ही लग्दीन ,कैल घार मा कबही मी फर लेख्यंण पढ़ण मा ,या म्यार शौक -सुभाव मा मी फर रोक टोक नी कै ,सच बोलंण त मिल कबही घार वलू थेय शियायत कु मौका ही नी देय ये मामला मा ,
कबिता वाली बात घार मा पता भी देर से ही चाल वू भी हिंदी कबिता फर राज्यपाल से इनाम मिलण फर ,वेक बाद मी हॉस्टल मा चली गयुं अब त ब्वे और ददी फ़ोन फर भी गढ़वली कबिता और गीत का बार मा पूछणा रैंदी और अच्छी रचना फर खुश भी हुन्दी ,घार जन्दू त़ा एक घडी दद्दी और मा दगड एक अच्छी कछ्डी लगद और मी अपड़ी कबितौं और गीतौं की सार्या सालिक फंची उन्मा लगा दिन्दू ,या मा मीथय भी अच्छी अनुभूति हुन्द और उन्थेय भी , मी सदनी कोशिश करदू की म्यार शौक और मेरी जवाबदारी (जॉब ,पारिवारिक ,सामाजिक ) मा मी एक संतुलन लेकी चलूँ याँ से सब निभ जान्द ,कुछ खास परेशानी नी हुन्दी ,मी जबरदस्ती नी लेख सकदु और अपनाप थेय लेखन से जबरदस्ती रोक भी नी सकदु

सवाल: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि

करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?


गी.ने: हाँ वू पंगती बस लिखीं रै जन्दी झोला मा ,कबही कबही प्रयोग मा ऐय भी जान्द पर इन् कम ही हुन्द

सवाल : जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
गी.ने: उठिक चट चटाक से लेकिख आराम से पोड जन्दू ,फिर हैंक दिंन जांच परिखिक पोस्ट कैर दिन्दू


सवाल: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
गी.ने: अंग्रेजी -हिंदी का का द्वी शब्दकोष ,संस्कृत- हिंदी -अंग्रेजी ,फ्रेंच भाषा कु एक शब्दकोष ,एक गढ़वली शब्दकोष


सवाल: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
गी.ने: थोडा थोडा बगत मिलण फर

सवाल : गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?

गी.ने: उत्गा ही जत्गा आलोचना से , दुया जरूरी छीं ,दुयुं से लेख्यंण मा खुराक मिलद पर इन्न भी नी च की आलोचना और समालोचना नी होली त़ा लेख्यंण वला ल कलम छोड़ दिंण ,वू आलोचक और समालोचक कु काम च ,लेख्यंण वाला कु काम नी च , म्यार लेखन दुयुं से मजबूत हुन्द

सवाल: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं आजौ / वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से निस्फिकर रौंदवां
गी.ने: निस्फिकर त नी रैंदु ,उर्दू ,भोजपुरी ,बंगला और संस्कृत (अनुवाद ) देखुणु रैंदु


सवाल : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
गी.ने: मी अंग्रेजी मा कुछ एक नै ज़माना का कब्युं थेय छोड़िक ज्यादातर पुरणा कवियुं थेय पढ़दु मिल्टन ,विलियम वोर्ड्स वोर्थ ,रुडयार्ड ,शैल्ली आदि की रचना मिथय स्कूल का दिनों से ही पसंद रैं

सवाल: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
गी.ने: कुछ ख़ास ऩा ,वामा अनुदित संग्रह तक ही सिमित छोवं बस ,वू भी भोत कम


सवाल: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
गी.ने: बांसोल ,पिपरी (पत्ता वल्ली ) , ढोलकी ,बाद बाद मा जागर गीतौं मा रूचि का कारण से थोडा थोडा ढोल ढ्मो , डोरं थकुलू या हुड़का सिखणा की बम्बे मा कत्गे बार भारी इच्छा व्हाई पर वक्ख बगत और अनुभवी गुरु दुया नी मिला


सवाल: आप संस्कृत , हिंदी, अंग्रेजी, भारतीय भाषाओँ क, होरी भासों क कौं कौं कवितौं क अनुवाद गढवाळी मा करण चैल्या ?
गी.ने: अनुवाद का बार मा अबही नी स्वाचु ,पर हां बगत आण फर देखलू जरूर ,बीच मा मी संस्कृत का कुछ नाटक और काव्य संग्रह मा दिलचस्पी लींण बैठी गयुं फिर शब्दकोष और व्याकरण मा ज्ञान वर्धन मा ही लग्युं रै गयुं ,पर अनुवाद हूँण चैन्द


प्रतिक्रिया / सन्देश : अपड़ी भाषा - अपड़ी संस्कृति कु सम्मान और संवर्धन भोत जरूरी च , दुसरी भाषा हम्थेय भैरा की दुन्या से जोड़दिं मगर हमरी गढ़वली कुमौनी भाषा हम थेय हमारा अपडा पहाड़ से अपड़ी जैड से जोड़दिं इल्लैकी जत्गा व्हेय सक्क गढ़ -कुमौनी मा बच्याव ,भाषा कु संकट अफ्फी ख़तम व्हेय जालू ,

बाकी गुरु जी आपक दगडी छुईं बता लगाकी त मिथय सदनी परम आनदं की अनुभूति हुन्द ,मेरी गढ़वली बोल्णा की भूख -तिस त़ा आप जना जंण गुरु और गढ़वली का प्रेमी मन्खियुं का दर्शन कैरिक ही बुझद ,आपल मिथय मेरी छवीं बत्तौं की गेढ -फंची खोलणा कु अवसर देय वाखुंण आपक आभार ,परमात्मा आप्थेय सदनी राजी ख़ुशी रख्यां और नै नवांण थेय आपकू मार्गदर्शी स्नेह आशीष इनन्ही मिलदा रयां ,आशा करदू की जल्द आपक दर्शन व्होला ,आप्थेय नै बरस की शुभकामना

अपडा एक गीत की यूँ पंगतियुं का दगड अब आपसे आज्ञा ल्युन्लू और अपड़ी विचार बाणी थेय अब विराम दियुन्लू


यूँ रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ

तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी जग्वाल माँ

जू भूली गयें त्वे थेय हे ब्वे ,ल्यौन्लू उं बोट्टी अंग्वाल माँ

तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी जग्वाल माँ


हे डालियूँ-बोटियूँ ,हे फूल -पातियौं ,राख्यां तुम भी ख्याल हाँ

हे गाड-गदिनियौं ,धार पन्देरौं,सों सजाकी रख्यां मेरी रोलयुं हाँ

यूँ रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ

तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी जग्वाल माँ ..............


जुगराज रयां !

नमस्कार

साभार : भीष्म कुकरेती , गढ़वाल दर्शन ,मुंबई

Friday, January 27, 2012

गढ़वाली कविता : फिक्वाल

फिक्वाल

मी खुण मोरणी बचणी
तुम खुणी ठट्ठा मज्जाक
मी खुण टक टक्की सदनी
तुम्हरा रैं रजवडा राज
तुम्हरा बाटा सोंगा सरपट
अर म्यार जोग तडतड़ी खडी उक्काल
तुम ढुंगा
मी गुणि बान्दरौं कु निर्भगी करगंड कपाल
तुम्हरू भीतिर बैठ
म्यारू गौं निकाल
तुम्हारी स्यार चोछौडी बीज -बीज्वाड
मेरी पुन्गडी सदनी कन्न रै प्वड़ी रवाड
तुम खुण बस एक वोट
हम खुण फिर सालौं साल कु रक्क रयाट
तुम्हरी घोषणा
हम खुणी साखियुं पुरणी चुसणया आस
तुम्हरा रोड शो
हम खुणी तमशु अज्काल
तुम्हरी जनसभा
समझा हमरि मुख्दिखैय आज
तुम्हरू अधा
हम भारी लाचार
तुम्हारी बोतल
हम झटपट तयार
तुम खुण चुनोव
हम खुणी पंचवर्षी लोकतंत्री त्यूहार
महँगई तुम खुण मुद्दा मज़बूरी
हम खुण जिंदगी भर कु श्राप
भ्रष्टाचार तुम खुण बौर्नवीटा
हम खुण रोग ला इलाज
टक टक्की तुम्हरी फिर दिल्ली जन्हेय
फिर तुम गूँगा बहरा
और मी खुण फिर वी रुसयुं मुख लेकी खडू
खैर विपदा कु
तडतुडू लाचार पहाड़
फिर तुम देवता सरया दुनिया खुण
अर मी बस एक एक फिक्वाल
अर मी बस एक फिक्वाल
अर मी बस एक फिक्वाल

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से

Wednesday, January 4, 2012

स्वीणा

स्वीणा

ब्याली रात मीथेय निन्द नी आई ,असल मा मिल सिंद चोट ही एक स्वीणा दयाख ,स्वीणा मा मिल दयाख की हमरी हरी भरी स्यारी मा कै का गोर बखरा उज्याड खाणा छाई ,
मी नींद मा स्वट्गल गोर हकाणू छाई

अचांण्चक से मेरी नींद खुल ग्या और फिर मीथेय सरया रात निन्द नी आई |
सुबेर लेकी जब मिल दुबई भटेय अपड़ी ब्वे खूण फ़ोन कार त़ वा वे बगत कै मा दूध मोल लिणी छाई ,जब मिल अपड़ी छुईं बत्ता लगेंय त़ा वा मी फर हैंसण बैठी ग्या
और ब्वाळ : बुबा तू भी कें स्यारी का बान अपड़ी नींद बिचोल्णु छै रे ,छूछा वा त़ा कब्बा की बंझेय ग्या ,आज १२ बर्ष व्हेय गईँ ,अब तक बांझी ही च ?

या बात सुणीक उन् त़ा कुछ नी व्हेय पर एक बात सोचण फर मी मजबूर व्हेय गयुं ?
एक जमाना मा पहाड़ का लोग भैर खीसगणा का स्वीणा देख्दा छाई ,कुई क्वीटा का ,कवी करांची का ,कुई दिल्ली का कुई बोम्बे का और बड़ा खुश हुंदा छाई
पर अब साब ये जमना मा लोग स्वीणा मा हिम्वंली डांडी कांठी ,गदना , भ्याल पाखा ,स्यार सगोड़ा अर गोर - गुठियार देखणा छीं और देखि की खूब रूणा छीं ?

किल्लेकी ????

या बात मेरी समझम त नी आणि च ???


लेखक :गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )