आखिर कन्नुक्वे बचऽलि मातृभाषा
- गीतेश सिंह नेगी
जब क्वी आदिम कै भाषा विशेष मा नि बच्यान्दो या कै भाषा विशेष तैं नि सम्लौंद त वा भाषा विशेष खत्म ह्वे जांद । ये ही आधार परैं यूनेस्कोन दुन्यौ भाषाओं तैं , सुरक्षित अर विलुप्त का बीच ,संकटग्रस्त (Vulnerable), निश्चित रूप से संकटग्रस्त (Definitely Endangered), भारी संकटग्रस्त (Severely Endangered) अर गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) 4 वर्गों मा बाँटी। यूनेस्कोन् 42 भारतीय भाषाओं तैं गंभीर रूप से संकटग्रस्त मानी।
जनगणना निदेशालय की एक रिपोर्ट बतांद कि भारत मा 22 आधिकारिक भाषा अर तकरीब 100 गैर-आधिकारिक भाषा बोले जांदिन। ये तकनीकी दौर में तकरीबन 42 भाषा इन्नी छन जौंक वजूद खतरा मा च। भले ही यों संकटग्रस्त भाषाओं तैं बोलण बच्याण वळा लोग जादा नि व्होला पर यी भाषा हमरि विराट सांस्कृतिक धरोहर छन। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पैली इन्नी 42 भारतीय भाषा- बोलियों लिस्ट बणैई च, जो खतरा मा छन अर सुरुक सुरुक कै मोरिक खत्म हुन्दा जाणि छन । यो 42 संकटग्रस्त भाषाओं मा 11 अंडमान अर निकोबार द्वीप समूह भाषा छन जौमा ग्रेट अंडमानीज़ , जरावा , लामोंगज़ी , लुरो , मियोत , ओंगे , पु , सनेन्यो , सेंतिलीज़ , शोम्पेन अर तकाहनयिलांग शामिल छन । मणिपुरै सात भाषा एमोल , अक्का , कोइरेन , लामगैंग , लैंगरोंग , पुरुम , तराओ , हिमाचळै चार भाषा , बघाती , हंदुरी, पंगवाली अर सिरमौदी यों संकटग्रस्त भाषाओं मा शामिल छन। यों संकटग्रस्त भाषाओं मा ओडिशा की मंडा, परजी , पेंगो, कर्नाटकै कोरागा अर कुरुबा , आंध्र प्रदेशै गडाबा अर नैकी , तमिलनाडु की कोटा , टोडा अर असमै तेई नोरा ,तेई रोंग , अरुणाचळै मारा, ना , उत्तराखंडै बंगानी, झारखंडै बिरहोर , महाराष्ट्रै निहाली, मेघालयै रुगा अर पश्चिम बंगाळै टोटो शामिल छन।
संविधान की आठवीं सूची का अनुच्छेद 344 (1) और 351 मा राजभाषा हिंदी दगड़ि बांग्ला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू आदि 22 भाषाओं तैं आधिकारिक मान्यता दिईं च जबकि अंगिका, बंजारा, बाजिका, भोजपुरी, भोति, भोतिया, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, धातकी, गढ़वाली, गोंडी, गुज्जरी, हो, कच्चाछी, कामतापुरी, कार्बी, खासी, कोडावा (कोरगी), कोक बराक, कुमांयूनी, कुरक, कुरमाली, लीपछा, लिम्बू, मिज़ो (लुशाई), मगही, मुंदरी, नागपुरी, निकोबारीज़, हिमाचली, पाली, राजस्थानी, संबलपुरी/कोसाली, शौरसेनी (प्रकृत), सिरैकी, तेन्यिदी तथा तुल्लू आदि 38 हौरि भाषाओं तैं 8वी अनुसूची मा शामिल कन्नै मांग काफी समय से जोर शोर से संसद मा उठणी च।
भारतीय भाषाओं को लोक सर्वेक्षण का हिसाबन दुन्यौ तकरीबन 4,000 भाषाओं बटि भारतै तकरीब 10% भाषा अगला 50 सालों मा विलुप्त हुण वळी छन जैमा सब चुलै जादा खतरा तटीय भाषाओं पर च। मतलब भारत मा बोले जाण वळी कुल 780 भाषाओं बटि लगभग 400 भाषा विलुप्त हुण वळी छन। हमरि भाषा सांस्कृतिक अर पारंपरिक ज्ञान की धरोहर छन पर युंकि लगातार समाजिक अर सरकारी उपेक्षा का कारण यी भाषा अब मरणासन्न ह्वेगिन, हर पंदरा दिन मा एक भाषा मोरणी च । एक आदिमै अंतिम संस्कार का दगड़ि एक भाषा बि अंतिम संस्कार हुणु च। २६ जनवरी २०१० खुणी अंडमान द्वीप समूह की ८५ वर्षीया बोआ की मौत का दगड़ि ग्रेट अंडमानी परिवारै भाषा ‘बो’ सदानि का वास्ता खत्म ह्वे ग्याई । नवम्बर २००९ मा बि बोरो नौ कि महिला कि मौत दगड़ि ही ‘खोरा’ भाषा को बि अंत ह्वे ग्ये। या सिर्फ एक भाषा ही मौत को सवाल अर पीड़ा नि, यो सवाल छ इतिहास,संस्कृति, क्षेत्र विशेष का भूगोल अर यों से जुड़याँ तथ्य अर ज्ञान का विराट भंडार कि क्षति को। सवाल यो छ कि आखिर यी भाषा खत्म किलै हुईं ? अंडमान द्वीपै 10 भाषा प्रचलन मा छाई ,आज ई भाषा केवल चार भाषाओं का समूह ‘ग्रेट अंडमानी भाषा’ तक सिकुड़ी रै ग्यीं 6 भाषा समाप्त ह्वेगिन्।
‘नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी एंड लिविंग टंग्स इंस्टीट्यूट फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजज’ का हिसाबन सन् २१०० तक दुन्या कि 7 हजार से भी अधिक भाषा खत्म ह्वे सक्दिन ,युमा लगभग सत्ताईस सौ भाषाएं संकटग्रस्त छन । जैमा असमै 17 भाषा शामिल छन जौमा देवरी,मिसिंग,कछारी,बेइटे,तिवा और कोच राजवंशी सब चुलै संकटग्रस्त भाषा छन। यों भाषाओं का बोलण वळा लगातार कम हुँदा जाणा छन अर नै छवाळि खाली असमिया, हिन्दी अर अंग्रेजी तक सिमटिक रै ग्याई। २८ हजार लोग देवरी भाषी, मिसिंग भाषी साढ़े पांच लाख अर बेइटे भाषी करीब १९ हजार लोग ही बच्यां छन । असमै बोडो, कार्बो, डिमासा, विष्णुप्रिया, मणिपुरी और काकबरक भाषाओं का बी इन्नी हाल छन।
भारत सरकारन वों भाषाओं आंकड़ा संग्रै करिन जौंतैं १० हजार से जादा संख्या मा लोग बोल्दिन। २००१ की जनगणना का आंकड़ा बोल्दिन बल इन्नी १२२ भाषा अर २३४ मातृभाषाएं छन। दुर्भाग्यवश 10 हज़ार से कम बोलण वळौं बोली भाषा ये सर्वेक्षण मा शामिल ही नि ह्वे साकी।
वर्ष 1961 की जनगणना अनुसार, भारत मा लगभग 1652 भाषा छै अर वर्ष 1971 मा केवल 808 भाषा ही ज्युन्दी रैं। भारतीय भाषाओं को लोक सर्वेक्षण 2013 का आंकड़ों का हिसाबन, पिछल 50 वर्षों मा तकरीब 220 हौरि भाषा लुप्त ह्वेगिन अर तकरीब 197 भाषाओं तैं लुप्तप्राय रूप मा दर्ज करे ग्याई । आखिर मातृभाषाओं पर इथगा बड़ा संकट का क्या कारण छन ? सबसे पैली बात त सरकारे भाषा सर्वेक्षण मा 10,000 से कम बोलण वळा लोगों कि भाषा तैं मान्यता नि देणु च। कम बोल्दरों का हुण से ई रोजगारै भाषा नि बण सकणी छन ,सामाजिक,सांस्कृतिक मूल्यों मा परिवर्तन, व्यक्तिवादी मानसिकता अर समाज से पैली अपडू हित सोचणै प्रवृति का कारण आज ई भाषा मरणासन्न हुईं छन।
उत्तराखंडौ परिपेक्ष मा सन 1894 बटि 1928 तक अंग्रेज सिविल अधिकारी जी. ए. ग्रियर्सनन ब्रिटिश काल मा जब पैली बार भारतै 364 भाषा बोलियों को सर्वेक्षण कैरिक 11 ग्रंथो मा प्रकाशित करे ग्ये त हमर गढ़वाळि ,कुमौनी,जौनसारी भाषाओं ब्यौरा ग्रंथ 9 भाग 4 मा नेपाल,हिमाचल,पंजाब, जम्मू अर कश्मीरै भाषाओं दगड़ि 'पहाड़ि भाषाओं' नौ से दर्ज करे ग्ये। आर्य भाषाओं वर्ग की पहाड़ी भाषा तैं पश्चिमी पहाड़ी जैमा नेपाल की खसकुरा मतलब नेपाली भाषा ,मध्य पहाड़ी जैमा गढ़वाल अर कुमौ की गढ़वाळि अर कुमौनी भाषा अर पश्चिमी पहाड़ी जैमा जौनसार बावर,शिमला पहाड़ी क्षेत्र,कुल्लू,मंडी अर सुकेत,चंबा अर पश्चिमी कश्मीरै भाषा शामिल छाई। हालांकि कुछ शोधकर्ता ये वर्गीकरण तैं भाषाई आधार पर ना मानिकी केवल वे दौर की प्रशासनिक सीमारेखाओं का आधार पर मन्दिन पर फिर बि भाषा सर्वेक्षण की पंवाण का अलावा वे दौर मा यो भाषाई अध्ययन अपना आप मा एक ऐतिहासिक कार्य छौ। यों पहाड़ी भाषाओं बटि नेपाली त संविधान कि 8 वी अनुसूची मा शामिल ह्वे ग्ये पर गढ़वाळि ,कुमौनी,जौनसारी भाषा वो सम्मान नि पै साकी जैकी वो हकदार छाई। गढ़वाळि अर कुमौनी भाषा जु कब्बि गर्व से गढ़वाळै पाल राजवंश अर कुमौ का चन्द राजवंश कि राजकाजै भाषा रैं वो आज यूनेस्कोन दुन्या संकटग्रस्त भाषाओं मा शामिल छन आज रुणपित्ती मुखडी कैकि अपडा बोल्दरों तैं धै ध्वाडी लगाणि छन।
सन 1891 का भाषाई सर्वेक्षण मा ब्रिटिश भारत मा मध्य पहाड़ी भाषा बोलण वलों की संख्या तकरीब 11 लाख 7 हज़ार 6 सौ बारा छाई। वर्ष 2001 की जनगणना का आंकड़ा बोलणा छन कि उत्तराखण्डै तकरीब 85 लाखै आबादी मा 2,106,142 (24.8 %) लोगोंकि मातृभाषा गढ़वाळि अर 1,948,142 (22.9%) लोगोंकि मातृभाषा कुमौनी अर तकरीब 1 लाख (1.3%) लोगोंकि मातृभाषा जौनसारी रूप मा दर्ज च। हिंदी भाषी लोगों कि संख्या तकरीब 31,83,092 (37.5%) छाई। प्रदेश का 13 जिलों में से 10 पहाड़ी जिलों कि मुख्य भाषा गढ़वाळि कुमौनी ही छाई। 2009 मा जब भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण की शुरुवात ह्वे त गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, मिजोरमै भाषाओं परैं सर्वेक्षण कार्य ह्वे । उत्तराखण्डै मातृभाषाओं पर सर्वेक्षण मा कुमाऊंनी, बुक्सारी, थारू, डारमा, थारू, रंग, जौनसारी, जौनपुरी, बंगाणी आदि 13 मातृभाषाओं परैं सर्वेक्षण करे ग्ये। हालांकि अब्बि बि यों भाषाओं का भाषाई स्वरूप अर यों परैं गंभीर अर विस्तृत अध्ययन अर सर्वेक्षणों मा वैज्ञानिकता आदि की जरूरत मैसुश होंदी। ‘भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण’ जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन का भाषा सर्वेक्षण का बाद भारत मा एक महत्वपूर्ण अर इतिहासिक कार्य च । ये सर्वेक्षण कि खासियत या छ कि येमा संविधानै आठवीं अनुसूची मा ‘दर्ज भाषाओं, ‘गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं’ अर ‘बोलियों’ मा क्वी भेद नि मानिक सब्बि तैं येमा शामिल करे ग्याई।
येमा तटीय, पहाड़ी, खानाबदोश, द्वीपीय, जंगली, जनजातीय सब्बि भाषाओं तैं दर्ज कन्नै वून्का दस्तावेजीकरण कन्नै भल्ली कोशिश करिं च।
उत्तराखण्डै 13 भाषाओं गढ़वाली, कुमाऊंनी, राजी, जौनसारी, जाड़, जोहारी, रंग ल्वू,बंगाणी, बुक्साड़ी, मार्छा, रवांल्टी, जौनपुरी, थाडू परैं बढ़िया जानकारी संग्रहित च। आज यों भाषाओं मा लिखण बोलण वळौं संख्या अर भविष्यै संकेत चुनौति सब येमा शामिल छन। सर्वेक्षण से जानकरी मिलद कि राजी भाषा तैं बोलण वळा अब 600 से बि कम लोग बच्यां छन।
यूनेस्को लिस्ट मा गढ़वाली अर कुमाउनी तैं संकटग्रस्त या असुरक्षित श्रेणी मा शामिल करयूं च मतलब जादातर नौना यों भाषाओं तैं बोल त सक्दिन पर केवल कुछ खास जगा जन्न कि अपडा घार मा ही। जौनसारी तैं निश्चित रूप से खतरा मा मने ग्याई मतलब नौना अपड़ि मातृभाषा रूप मा ईं भाषा को अब प्रयोग नि करि सकणा ।
गढ़वाळि कुमौनी या हमरि हौरि मातृभाषाओं तैं संकटग्रस्त भाषाओं मा आण से कन्नुक्वे रोके जाव या हमरि जु भाषा संकटग्रस्त श्रेणी मा छन वो तैं कन्नुक्वे संरक्षित करे जाव , वूंंक संवर्धन कन्नुक्वे करे जाव ये अहम मसला परैं एक सुनियोजित कार्ययोजना अर क्रियान्वयन को स्पष्ट एजेन्डा सब्बि भाषा का निबत काम कन्न वळी संस्थाओं,बुद्विजीवियों अर भाषा साहित्य प्रेमियूं तैं बगत रैन्द कन्नै सख्त जरूरत च।आखिर इन्नी क्या कार्ययोजना हो ज्यां से हमरि सब्बि भाषा एक विरासतैं रूप मा ज्युन्दा जगदा रूप मा हम अपड़ि नै पीढ़ी तक पहुँचे सकों ?
भाषाई विमर्श का मूल बटि जलमी वूंं सब्बि संस्थाओं तैं जु दशकों बटि भाषाई मुद्दा तै लेकि सक्रिय रै,पूरी ऊर्जा पुरी सक्या का दगड़ि धरू धरों मा,स्युसी बैजरो ,पिथौरागढ ,नैनीताल , धुमाकोट ,रुद्रप्रयाग, जूशीमठ, चमोली,अगस्तमुनि , परसुंडाखाळ , पौड़ी,अल्मोड़ा,उत्तरकाशी,
रिखणीखाळ,कोटद्वार ,गवाणी से लेकि सुदुर बॉम्बे दिल्ली,कानपुर तक धाद लगाणा रैं , कुमगढ़ अर दुधबोलिक पहरू बण्या रैं ,भाषै रंत-रैबार , ख़बरसार दिणा रैं, भाषै कलश स्थापित करदा रैं , भाषा साहित्य प्रेमियूं परैं दशकों बटि चिट्ठी दे देकि अंग्वाळ बोटणा रैं हर्बी हर्बी भाषा साहित्य का कारिजों मा हुंगरा दिण से लेकि धै धाद तक मन्ना रैं आज नै ऊर्जा नै सक्या अर नै विचारों दगड़ि एक नै राष्ट्रव्यापी एजेन्डा परैं मिलिक काम कन्नै जरूरत च।
सवाल यो च कि आज भाषाई संकट अर विमर्श कि दशा दिशा क्या च अर क्या यो विमर्श सै दिशा मा कै तर्कसंगत कार्ययोजना या भाषिक एजेन्डा का हिसाब से चलणु च ?
व्हेय सकद कि सब्बि भाषा साहित्य प्रेमियूं,संस्थाओं,साहित्यकारों कि पूर्ण समर्पण भाव से भावात्मक रूप से अपड़ि सर्या ताकत ये विमर्श परैं लगाईं हो अर लगाईं बि च जैका वास्ता सब्बि बधै का पात्र छन फिर्बी क्या दशकों कि ईं मेहनत का बाद भाषाई संकट सकारात्मक दिशामा दूर होन्द दिखेंणु च या यों प्रयासों का भाषिक धरातल पर कुछ उत्त्साहजनक नतीजा भाषाई सरोकारों से जलमी/उपजीं संस्थाओं तैं दिखेणा छन्न ?
क्या भाषा विमर्श अर भाषा प्रचार प्रसार को क्वी ठोस कार्ययोजना या एजेंडा भाषा विमर्श का मूल से जलमी हमरि यो संस्थाओं कि वार्षिक गतिविधियों का कलेण्डर मा शामिल बि च ?
क्या भाषिक विमर्श का मूल से उपजीं हमरि ई संस्था भाषा अर साहित्य तैं एक मानिक महज साहित्यिक आयोजनों जन्न कि कवितापाठ, क्वी संजैत संग्रै पोथि आदि छपेकि या पुस्तक विमोचन या सम्मान समारोह उर्याकि अपडा भाषिक कार्यों कि इतिश्री त नि मान लिणी छन ?
क्या हमरि यों संस्थाओं तैं भाषा कार्ययोजना अर साहित्यिक कारिजों मा फर्क मालूम च ?
मितैं इन्न लगद कि हमरि अधिसंख्य संस्था भाषिक अर साहित्यिक गतिविधियों मा फर्क नि समझणि,वो विशुद्ध साहित्यिक आयोजनों तैं भाषा आंदोलन एजेंडा से सीधा जोडिक ही ना बल्कि एक ही मानिक हिटणा। साहित्यकार अर कवि अगर ये भ्रम मा छन कि केवल कवितापाठ से या पोथि छपाण से हमरि संकटग्रस्त भाषा बची सक्दिन त ये से बडो भ्रम कुछ नि ह्वे सक्दो।
यदि भाषिक विमर्श का मूल से उपजीं संस्था बिना कै सुनियोजित एजेंडा का दगड़ि कवितापाठ,पुस्तक प्रकाशन,लोकार्पण आदि जन्न साहित्यिक गतिविधियों तैं भाषाई विकास अर भाषा बचाओ आंदोलन का एजेन्डा कि इतिश्री करदन त निश्चित रूप से हमरि भाषा भयंकर रूप से खतरा मा छन।
विद्ववतजनों जब भाषा तैं बोलण वळा ही नि राला त कैल पढ़णै यो साहित्य ? तब यो सृजित साहित्य खाली शोध को विषय व्होलु । क्या हम अपड़ि भाषा का इन्ना दिन देखणै गाणि स्याणी कन्ना छौ? क्या येका बान ही हुईं इथगा फिरडा फिरड ?
यदि साहित्यकार आज लिखणो छोड़ी बि देला त बि इथगा काम त व्हेय ही जालो कि ना ? फिर भै जब भाषा अर पहाड़ ही नि बचलो त कैन पढ़णी यी पोथि ? कुछ लोग 8 वी अनुसूची को नौ अक्सर लीणा रैन्दी ,कि जी 8वी अनुसूची मा शामिल करा अर भै जब भाषा बचलि त लिखै बि जालु अर 8 वी अनुसूची मा शामिल बि ह्वे ही जैली पर इन्नी 8वी अनुसूची या किताबों को बि क्या काम कि केवल शोध को विषय बणिक रैं जैं भाषा।
आज ये दौर मा भाषा जनचेतना तैं राष्ट्रीय स्तर पर समाज का हर घार अर हर मनखि बीच लेकि जाणै जरूरत च। भाषा तैं हीनता छोड़िक अस्मिता अर गौरव को विषय बणाणै जरूरत च। समाज तैं अलमारियों मा बंद साहित्यै जरूरत नि बल्कि इन्ना साहित्य सृजन की जरूरत च जैकि घर घर मा सुलभ उपलब्धता बि हो। मितैं लगद सब्बि साहित्यकारों तैं,भाषा साहित्य संस्थाओं तैं सृजित साहित्य कि सामूहिक या सहकारिता आधारित सुलभ वितरण व्यवस्था परैं बि विचार विमर्श कन्नै सख्त जरूरत च। जब हम आफ्फि नि पढणा त हौरि लोगोंन किलै पढ़ण।
आज भाषै कुटरि/ फंचि/खुचकंडी त्यार कैरिक मातृभाषा पुस्तकालय बणाणै जरूरत बि च त अपड़ि विशुद्ध साहित्यिक जिकुड़ी मा एक कुणा मातृभाषा को त्यार कन्नौ, मेरि मातृभाषा मेरि पछ्याण ,आखिर कन्नुक्वे बचलि मातृभाषा अभियान आदि शुरु कन्नै जरूरत बि च ।
म्यार विचार त यो च कि हमरि भाषाओं तैं जतगा जरूरत नै कवियों,साहित्यकारों कि च वे से जादा जरूरत भाषा बोलण, पढ़ण ,सुणण समझण वलों कि बि च। त येका वास्ता इन्नी संस्थाओं तैं मातृभाषा साहित्य को पुस्तकालय स्थापित कन्नु, मातृभाषा अर संस्कृति का रस मा रच्यां भाषिक एजेन्डा तैं हर संस्था तक लिजाणु वूंंकी भागीदारी सुनिश्चित कन्नु या एक इन्न भाषिक माहौल तैयार कन्नु बि हुण चैन्द जैमा ना केवल पहाड़ का गौं बाजार मा बल्कि सुदूर प्रवास मा बि लोग अपड़ि भाषा से सगर्व जुड़ीं सकीं।
मातृभाषा जनजागरूकता अभियान स्कोल कालेजों से लेकि स्थानीय बाजार / व्यापार मण्डलों ,सब्बि रैवासी अर प्रवासी सामाजिक संगठनों कि भागीदारी जरूरी हुण चैन्द। हमरि मातृभाषा हमरि पछ्याण जन्न अभियान बरोबर चलण चैन्दि । स्कोल कॉलेजों मा मातृभाषा सुलेख/निबन्ध लेखन प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, अंताक्षरी प्रतियोगिता ,काव्यपाठ प्रतियोगिता आदि को आयोजन कैरिक नै पीढ़ी तैं प्रोत्साहित कन्नै जरूरत च। सांस्कृतिक आयोजन वळी संस्था लोकगीत या लोकनृत्य प्रतियोगिता कैरिक या इन्नी क्वी कार्यशाला उर्यैकि अपड़ि भागीदारी सुनिश्चित करि सक्दिन। पर सब चुलै पैली जरूरत च अपडा घार मा अपड़ि मातृभाषा तैं बचाणै।
भाषा का एजेंडा तैं समाज का बीच लिजैकि ही समाज मा भाषा का प्रति जागरूकता आ सकद,केवल ऑनलाईन/ऑफलाईन कवि सम्मेलन या पुस्तक विमोचन से भाषै भल्यार नि ह्वे सक्दि। नै पुराणा लिख्वारों बीच बि भाषिक साहित्यिक संचेतना वास्ता गंभीर विमर्श जरूरी च याँ से नै छवाळि तैं वरिष्ठ साहित्यकारों का तजुर्बा से काफी कुछ सिखणो मिली सकद।
आज हमरि भाषाओं का संरक्षण,संवर्धन अर प्रोत्साहन वास्ता हम सब्यूँ तैं एकजुट व्हेकि एक राष्ट्रीय जनजागरूकता अभियान चलाणै जरूरत च जैका वास्ता मंच,माला अर माया को मोह छोड़िक निस्वार्थ भाव से मातृभाषा प्रचारक बणि अपडू योगदान दिणै जरूरत च। अगर भाषिक चेतना नि व्होलि त राज्य मा ईं माटि कि मातृभाषाओं तैं तिरैकी हौरि भाषाओं तैं राजभाषा रूप मा थर्पणै प्रपंच चलणा राला अर एक दिन अपड़ि ही धर्ती मा हमरि मातृभाषा दम तोडी देली।
भाषा तैं केवल भाषा प्रेमी ही बचा सक्दिन क्वी कवि , लेखक या साहित्यकार ना। आज एक विशुद्ध मातृभाषा एजेन्डा परैं मिलजुलिक काम कन्नै सख्त जरूरत च। इलै भाषिक अर साहित्यिक संस्थाओं तैं भाषा प्रचारक पैदा कन्नै जरूरत च बजाय आत्ममुग्ध कवियों तैं पैदा कन्नै । दुःखद बात या च कि फिलहाल अति आत्ममुग्ध कवियूँ अर साहित्यकारों फौज जादा त्यार हुणी।
किलैकि भाषा एक सामाजिक अर परंपरागत रूप से कमैई संपत्ति होंद इलै ईं धरोहर तैं नै छवाळि तक विरासत रूप मा सौंपणै भारी जरूरत च। यो एक सामूहिक कार्य च जैमा समाज कि हर संस्था हर व्यक्ति कि भागीदारी जरूरी च।भाषा तैं बचाणु सिर्फ साहित्यकारों को काम नि ,साहित्यकार बचा बि नि सकदा ,यो भ्रम जतगा जल्दी खत्म व्होलु अर जतगा जल्दी येमा समाजिक भागीदारी सुनिश्चित करे जाली भाषा वास्ता उतगा उत्तम व्होलु नथिर 'ग्रेट अंडमानी भाषा' सी हालात हुणा मा जादा देर नि लगणि।
सरकार द्वारा प्राथमिक अर जूनियर स्तर पर गढ़वाळि,कुमौनी,जौनसारी अर रंग भाषा तैं शामिल कन्नै घोषणा, पुस्तक प्रकाशन आदि कुछ सराहनीय कदम जरूर उठाये ग्यीं पर यी नाकाफी छन। ईं दिशा मा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मण्डल कि पहल बि सराहनीय छन। मातृभाााषाओं मा शिक्षा की सरकारी पहल बि स्वागत योग्य कदम च। पर हालात का हिसाबन यो प्रयास नाकाफी छन।मातृभाषाओं का मुद्दों परैं सरकारों अर नेताओं परै सामाजिक दवाब बणाणै जरूरत बि च । साहित्यकारों को मंच,मैक अर माला मोह छोडयां बिना यो काम थोड़ा मुश्किल जरूर च पर इथगा असंभव बि नि लगदो।
भारतै तमाम स्थानीय भाषा बोलियों अंग्रेजी को बढ़दा व्यावसायिक दबाब का कारण संकटग्रस्त छन। किलैकि व्यवसायिक, प्रशासनिक,चिकित्सा,तकनीकी सब्बि कि आधिकारिक भाषा अंग्रेजी रोजगार कि भाषा बणि ग्याई इलै मजबूरी मा नै छवाळि को बि अपड़ि मातृभाषा से मोह भंग सी हुँदा जाणु। मातृभाषा का प्रति एक हीन भावना समाज मा पैदा हुँदा जाणि च। सरकार तैं चैन्द कि वो पुस्तक प्रकाशन प्रोत्साहन योजना से उब्बू सोचिक विलुप्त अर संकटग्रस्त भाषाओं तैं बचोणा गंभीर नीति पर कार्ययोजना तैयार कैरिक यों तैं शिक्षा ,रुजगार कि भाषा बणाणै कार्ययोजना तैयार कैरिक हमरि मातृभाषाओं का जानकारों तैं निगमों, निकायों, पंचायतों, बैंकों अर हौरि सरकारी विभागों मा रोजगार द्याव। याँ से ना केवल अंग्रेजी को दवाब कम व्होलु बल्कि इन्नी सकारात्मक नीतियों से नै पीढ़ी मातृभाषा का प्रति हीन भावना से बि मुक्त व्होलि,भाषा संरक्षण अर जागरूकता बि पैदा व्होलि अर हम यूँ भाषाओं तैं वो सम्मान बि दे सकला जैकि वो हकदार छन।
हमरि मातृभाषाओं का संरक्षण अर संवर्धन वास्ता भाषा साहित्यिक दस्तावेजो को डिजिटलिकरण कन्नै पहल बि जरूरी च। लोकसाहित्य, लोकगीतों अर मातृभाषा साहित्य आदि का श्रव्य दृश्य/ऑडियो विज़ुअल डाक्यूमेंटेशन/दस्तावेजीकरण बि जरूरी च। सरकार अर सम्बंधित विभाग ईं दिशा मा कुछ सक्रिय त दिखेणा छन पर अब्बि यो कार्यों मा स्पष्टता अर व्यापकता को अभाव च। अब्बि यो काम शुरवाती चरण मा च।
साल न्याल बात या च कि उत्तराखण्डै मातृभाषाओं तैं बचाणै मातृभाषा अभियानै शुरवात अपडा घार बटि उत्तराखण्ड समाज का हर व्यक्ति तैं शुरू कन्नी पोडली । भाषा साहित्य का विद्वानों ,भाषिक अर विशुद्ध साहित्यिक संस्थाओं तैं मातृभाषा अभियान कि अगल्यार लिण पोडली अर एक सुनियोजित,राष्ट्रव्यापी मातृभाषा संरक्षण को एजेन्डा दगड़ि प्रबुद्ध सामाजिक संस्थाओं अर सर्या समाज तैं शामिल कैरिक काम कन्न पोडलु तब निश्चित रूप से सामाजिक जनभागीदारी से यो अभियान सफल व्होलु अर आण वळा बगत मा हमरि मातृभाषा, हमरि पछ्याण अर हमरू साहित्य सब्बि बच्यां राला। एक फलदा-फुलदा हैसदा- खेलदा लोक समाजे हमर स्वीणा हमरि गाणि बि तब्बी सै अर्थों मा साकार व्हेली अर सार्थक व्होलु हमरू 'अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस'।